विद्युत वाहनों की अपार संभावना

आगामी दशक तक भारतीय नगरों की जनसंख्या लगभग दुगुनी हो जाएगी। लगभग 50 करोड़ लोग नगरों में रहने लगेंगे। कामकाज के सिलसिले में इतनी आबादी को एक अच्छे परिवहन ढांचे की जरूरत होगी। नगरों की आबादी के बढ़ने से आने वाली सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौती का सामना करने के लिए भारत को सार्वजनिक परिवहन को चुस्त-दुरुस्त करना होगा। इससे प्रदूषण कम होगा, बढ़ने वाली भीड़ को नियंत्रित रखा जा सकेगा, ऊर्जा सुरक्षा सुदृढ़ रहेगी और रोजगार के अवसर भी पनपेंगे।
ग्लोबल मोबिलिटी समिट को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने भारत के परिवहन ढांचे की सात आधारों पर व्याख्या की। इन आधारों के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत को एक दीर्घावधि सुनियोजित नीति पर काम करना होगा।
  • भारत में प्रति हजार व्यक्ति पर 20 वाहन हैं। यह एक तरह का सकारात्मक पक्ष है। अमेरिका में यही संख्या प्रति हजार पर 900 है, और यूरोप में 800 है। भारत में आंतरिक दहन इंजन मॉडल के स्थान पर विद्युत वाहन लोकप्रिय बनाया जा सकता है। फिलहाल यहाँ आई.सी.ई. प्रकार के वाहन का इस्तेमाल 5 प्रतिशत लोग करते हैं। पश्चिमी देशों से अलग भारत अपना अलग परिवहन ढांचा तैयार करने की स्थितियां रखता है। हमारा ध्यान सार्वजनिक संपर्क साधने वाले विद्युत वाहनों पर केन्द्रित होना चाहिए।
  • भारत में ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में 80 प्रतिशत बिक्री दोपहिया और तिपहिया वाहनों की होती है। अगर इन दोनों तरह के वाहनों को विद्युत आधारित बनाने में सफलता मिल जाती है, तो यह भारत के लिए ई-मोबिलिटी की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
  • परिवहन का विकास इस प्रकार से किया जाए कि उसमें सार्वजनिक वाहनों की मुख्य भूमिका हो। फिलहाल भारत में प्रति हजार व्यक्त्यिों पर मात्र 1.2 बसें हैं। अन्य विकासशील देशों की तुलना में यह काफी कम है। 458 भारतीय नगरों में से केवल 63 शहरों में ही बस का व्यवस्थित तंत्र है। केवल 15 शहरों में बस या रेल रेपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम है। राज्य एवं स्थानीय सरकारों को भी सार्वजनिक परिवहन के विकास पर अधिक ध्यान देना होगा।
  • आंतरिक दहन इंजन (आई.सी.ई.) के स्थान पर विद्युत वाहनों को बढ़ावा देने से “मेक इन इंडिया” को भी प्रोत्साहन मिलेगा, और पारिस्थितिकीय तंत्र भी बेहतर बनेगा। इस प्रकार के वाहनों का चरणबद्ध तरीके से निर्माण करना होगा। इसके लिए एक सक्षम वित्तीय कर ढांचा, आकार और पैमाना रखना होगा। तभी भारत घरेलू और वैश्विक स्तर की गुणवत्ता वाले विद्युत वाहन बनाने में सफल हो सकेगा।
  • विद्युत वाहनों में बैटरी की कीमत 40 प्रतिशत के करीब होती है। इस मामले में बैटरी निर्माण उद्योग के लिए यह एक सुअवसर है। रॉकी मॉउन्टेन और नीति आयोग के अध्ययन के अनुसार विदेशों से कच्चा माल मंगवाकर भारत में बैटरी सैल और पैक तैयार किए जा सकते हैं। ऐसा करके भारत इस क्षेत्र में 80 प्रतिशत बाजार पर आधिपत्य जमा सकता है। बैटरी की नई तकनीकों पर काम चल रहा है। भारत को सजग रहते हुए इस क्षेत्र में अनुसंधान और विकास पर पूरा जोर लगा देना चाहिए।
  • भारतीय नगरों में चार्जिंग स्टेशन बढ़ाए जाने चाहिए। इसके लिए राजमार्गों और शहरी क्षेत्रों में बने पेट्रोल पम्पों को केन्द्र में रखा जा सकता है।
इलैक्ट्रिक वाहनों की कीमत के 2024 तक अन्य पेट्रोल-डीजल वाहनों के समकक्ष पहुँचने की संभावना है। इन वाहनों से ईंधन की बचत हो सकती है। व्यापार घाटे में कमी एवं पर्यावरणीय लाभ जैसे अन्य अनेक फायदे हो सकते हैं। देश के आईआईटी और इंजीनियरिंग संस्थानों को भी वाहनों में प्रदूषण मुक्त, सस्ती व टिकाऊ बैटरी पर शोध को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए।
केन्द्र सरकार ने विद्युत वाहन योजना को तेजी से अंगीकृत करने हेतु इसके दूसरे चरण को मंजूरी दे दी है। इससे भारत के नगरों में परिवहन को मजबूत करने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का पता चलता है।
मॉर्गन स्टेन्ली की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में तेजी से होते डिजिटाइजेशन, मोबाईल टेलीफोनी और प्रति व्यक्ति कार के कम प्रयोग से ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि 2040 तक भारत की आधी कारें इलैक्ट्रिक हो जाएंगी।
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Milan Tomic

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