- हमारी राज्यसभा को मूल रूप से राज्यों की सभा बनाना चाहिए। यदि हमें संघात्मक भारत चाहिए, तो अमेरिका की तरह सभी भारतीय राज्यों को राज्यसभा में समान प्रतिनिधत्व मिलना चाहिए। उत्तरप्रदेश को 31 सीटें और गोवा, सिक्किम वगैरह को सिर्फ एक-एक क्यों? यदि संविधान संशोधन के वक्त हर राज्य का एक वोट है, तो राज्यसभा-सीटों में समान संख्या क्यों नहीं है?
- प्रत्येक राज्यसभा उम्मीदवार को अपने प्रदेश का मूल निवासी होना चाहिए।
- राज्यसभा का उम्मीदवार कौन बनेगा, यह पार्टी-नेता तय नहीं करें, बल्कि उस राज्य की पार्टी शाखा आंतरिक चुनाव से करे।
- राज्यसभा का चुनाव सीधे जनता द्वारा क्यों नहीं किया जाए, जैसा कि सीनेट का होता है?
- इसी आधार पर लोकसभा की तरह उसे पूर्ण वित्तीय अधिकार क्यों नहीं दिए जाएं ताकि देश में संघात्मक शासन प्रणाली एक असलियत बन जाए।
- उम्मीदवारों की आयु 30 की बजाय 40 की जाए, ताकि परिपक्व और अनुभवी लोग ‘वरिष्ठ सदन’ में बैठें।
- राज्यसभा में नामजदगी के लिए एक पैनल बनना चाहिए, जिसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश होने चाहिए।
यदि हम हमारी राज्यसभा को वरिष्ठों का सदन बनाना चाहते हैं, यदि हम उसे हमारी संघात्मकता का आधार स्तंभ बना हुआ देखना चाहते हैं, और सचमुच उसे हम राज्यों का प्रतिनिधि सदन बनाना चाहते हैं, तो हमें राज्यसभा के ढांचे में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
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