कन्याकुमारी की एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा जैसी बहुमत प्राप्त स्थिर सरकार और विपक्ष की अस्थिर गठबंधन सरकार में चुनाव करने की अपील की है। क्या सुशासन की स्थापना में गठबंधन सरकार की अपेक्षा स्थिर सरकार वाकई बेहतर सिद्ध होती है ? इसका उत्तर जानने के लिए 1984 से लेकर 2019 तक की सरकारों पर एक नजर डाली जानी चाहिए। इस बीच 1984-89 और 2014-19 में केवल दो बार ही पूर्ण बहुमत वाली सरकार आई है। पहले वाले काल में राजीव गांधी के नेतृत्व में, और दूसरी बार नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ये सरकारें चली हैं।
- पूर्ण बहुमत वाली सरकार की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसके सभी निर्णय आम सहमति के बजाय एक सर्वोच्च नेतृत्व पर निर्भर करते हैं। पारंपरिक ज्ञान तो यही बताता है कि विशेषकर बड़े और जटिल निर्णयों में एक के बजाय सर्वसम्मति से लिया गया निर्णय बेहतर होता है। पूर्ण बहुमत प्राप्त सरकार के नेताओं में परामर्श लेने की प्रवृत्ति कम ही होती है।
इस संदर्भ में राजीव गांधी सरकार के काल में शाहबानो मामला और मोदी सरकार में लिया गया विमुद्रीकरण के विफल निर्णय का उदाहरण दिया जा सकता है। योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग का गठन करना, और आर्थिक सलाहकार समिति को भंग करने का निर्णय; मामलों को केन्द्रीकृत करने की प्रवृत्ति को दिखाता है।
- पूर्ण बहुमत वाली सरकार, अपने बाहुबल के दम पर बहुत कुछ करवा लेती है। वर्तमान सरकार के एक तरफा सोच वाले निर्णयों ने कश्मीर की शांति को भंग कर दिया है। इसके कारण वहाँ के बहुत से युवा उग्रवादी हो गए हैं। 2018 में वहाँ 586 लोग मारे गए हैं। इनमें आम नागरिकों के साथ-साथ फौजी भी हैं। मोदी की पूर्ण बहुमत सरकार ने भारत के बहुत पुराने मित्र नेपाल से अलगाव कर लिया है। यही कारण है कि वह चीन के निकट जा पहुंचा है।
दक्षिण एशिया में बढ़ती चीन की घुसपैठ के प्रति मोदी सरकार का नरम रवैया रहा है।
इसी प्रकार से राजीव गांधी ने श्रीलंका के तमिल लोगों के प्रति जल्दबाजी में एक विदेश नीति आरोपित की थी, जिसका परिणाम उनकी हत्या के रूप में सामने आया।
- एन डीए-1, यूपीए-1 औैर 2 के समय की गठबंधन सरकारों के दौरान भारत एक परमाणु शक्ति बना। इसके बावजूद अमेरिका ने उसे न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप का समर्थन दिया।
सामान्य रूप से देखने पर तो यही लगता है कि सरकार की स्थिरता और नीतियों की निश्चितता से ही निरंतर आर्थिक विकास होता है। लेकिन भारत की गठबंधन सरकारों के काल में विकास दर अपेक्षाकृत अधिक रही है। यूपीए के दस वर्ष के शासनकाल में यह 7.75% रही, जबकि मोदी सरकार में यह 7.35 प्रतिशत ही रही। मनमोहन सरकार के काल में करीब 14 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर लाया जा सका।
एनडीए-1 के शासनकाल में सड़क और परिवहन का तेजी से विकास हुआ। उदारीकरण भी नरसिम्हा राव की अल्प बहुमत वाली सरकार के दौरान शुरू किया गया। इस प्रकार के अनेक उदाहरण खोजे जा सकते हैं।
- प्रजातंत्र की विशेषता इसके संस्थानों की स्वायत्तता और सरकार की सत्तावादी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना है। ये संस्थान गठबंधन सरकारों के दौरान अधिक शक्तिशाली रहे हैं। यूपीए-2 के शासनकाल के दौरान हुए घोटालों की जाँच करने वाली ‘कैग’ संस्था को स्वतंत्र कहा जा सकता है। पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार ने संस्थाओं की स्वतंत्रता को रौंद डाला है। इस दौरान उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों का प्रेस वार्ता करना उनकी घुटन को व्यक्त करता है।
अनेक राज्यों में पंचायत चुनावों में देरी करके उसे कमजोर करने का प्रयत्न किया है। सीबीआई की नियुक्तियों में सरकारी हस्तक्षेप को लेकर मचा बवाल, आर बी आई के गवर्नरों का असंतोष आदि संस्थानों की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं।
पूर्ण बहुत और स्थिरता को सुशासन का आधार कहना वास्तविक नहीं लगता। गठबंधन में आम सहमति की अनिवार्यता होती है। यही प्रजातंत्र की आत्मा की रक्षा का मंत्र है।
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