जीवन को जो आराम मानते हैं, वे जीवन को नहीं जानते । वे जीवन का स्वाद नहीं पाएँगे। जीवन युद्ध है आराम नहीं और अगर आराम है तो वह उसी को प्राप्य है जो उस युद्ध में पीछे कुछ न छोड़ अपने पूरे अस्तित्व से उस में जूझ पड़ता है । जो सपने लेते हैं वे सपने लेते रहेंगे । वे आराम नहीं, आराम के ख्याल में ही भरमाये रहते हैं । पर जो सदानंद है, वह क्या सपने से मिलता है ? आदमी सोकर सपने लेता है । पर जो जागेगा वही पाएगा । सोने का पाना झूठा पाना है । सपना सपने से बाहर खो जाता है । असल उपलब्धि वहाँ नहीं । इससे मिलेगा वही जो कीमत देकर लिया जाएगा । जो आनन्द-रूप है, वह जानने से जान लिया नहीं जाएगा । उसे तो दु:ख पर दु:ख उठाकर उपलब्ध करना होगा । इसलिए लिखने-पढ़ने और मनन करने से उसकी स्तुति अर्चना ही की जा सकती है, उपलब्धि नहीं की जा सकती । उपलब्धि तो उसे होगी जो जीवन के प्रत्येक क्षण योद्धा है, जो अपने को बचाता नहीं है, और बस अपने इष्ट को ही जानता है, कहो कि उसके लिए अपने को भी नहीं रखता है ।
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