भिक्षावृत्ति अपराध या विवशता

दो वक्त की रोटी के लिये किसी के आगे हाथ फैलाना अपने-आप में अपने जमीर को मारने जैसा लगता है। लेकिन ये किसी से छुपा नहीं है कि भिक्षावृत्ति के उदाहरण अक्सर सड़क किनारे,धार्मिक स्थलों के आस-पास या चौक-चौराहों पर दिख जाते हैं। एक संजीदा नागरिक के रूप में आपके मन में ये सवाल उठ सकता है कि क्या भीख मांग रहे ये लोग अपनी विवशता के कारण ऐसी हालत में हैं या फिर ये किसी साजिश के शिकार हैं। ताज्जुब की बात तो ये है कि इस संबंध में अभी तक कोई बेहतर मैकेनिज्म नहीं बन पाया है। बहरहाल हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने वाले कानून बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेगिंग एक्ट, 1959 [Bombay Prevention of Begging Act, 1959] की 25 धाराओं को समाप्त कर दिया है। साथ ही, भिक्षावृत्ति के अपराधीकरण को असंवैधानिक करार दिया है। हाई कोर्ट ने यह निर्णय भिखारियों के मौलिक अधिकारों और उनके आधारभूत मानवाधिकारों के संदर्भ में दायर दो जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दिया।
  • यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि देश में अब तक भिक्षावृत्ति के संदर्भ में कोई केंद्रीय कानून नहीं है। बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेगिंग एक्ट, 1959 को ही आधार बनाकर 20 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों ने अपने कानून बनाये हैं। दिल्ली भी इनमें से एक है। वहीँ दूसरा केंद्रशासित प्रदेश है दमन और दीव।
  • इस लेख में हम जानेंगे कि भारत में भिक्षावृत्ति किन-किन रूपों में देखी जाती है और इसके पीछे निहित कारण क्या हैं? बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेगिंग एक्ट के प्रमुख प्रावधान क्या हैं? ये प्रावधान किस प्रकार संविधान में दर्शाए गये मौलिक अधिकारों और आधारभूत मानवाधिकारों से असंगत हैं? साथ ही हम इस बात की चर्चा करेंगे कि भिक्षावृत्ति की समस्या से निपटने के लिये किस प्रकार के उपाय किये जा सकते हैं?
भारत में भिक्षावृत्ति किन रूपों में विद्यमान है और इसके पीछे के कारण क्या हैं ?
  • भिक्षावृत्ति का सबसे साधारण classification ऐच्छिक भिक्षावृत्ति और अनैच्छिक भिक्षावृत्ति के रूप में किया जा सकता है। बहुत से ऐसे लोग हैं जो आलस्य, काम करने की कमजोर इच्छा शक्ति आदि के कारण भिक्षावृत्ति अपनाते हैं। भारत में कुछ जनजातीय समुदाय भी अपनी आजीविका के लिये परम्परा के तौर पर भिक्षावृत्ति को अपनाते हैं। लेकिन यहाँ पर गौर करने वाली बात ये है कि भीख मांगने वाले सभी लोग इसे ऐच्छिक रूप से नहीं अपनाते।
  • दरअसल, गरीबी, भुखमरी तथा आय की असमानताओं के चलते देश में एक वर्ग ऐसा भी है, जिसे भोजन, कपड़ा और आवास जैसी आधारभूत सुविधाएँ भी प्राप्त नहीं हो पातीं। यह वर्ग कई बार मजबूर होकर भीख मांगने का विकल्प अपना लेता है। भारत में आय की असमानता और भुखमरी की कहानी तो ग्लोबल लेवल की कुछ रिपोर्टों से ही जाहिर हो जाती है।
  • दिसम्बर, 2017 में प्रकाशित वर्ल्ड इनइक्वैलिटी रिपोर्ट [World Inequality Report] के अनुसार भारत के 10% लोगों के पास देश की आय का 56% हिस्सा है। वहीं International Food Policy Research Institute नामक एक संगठन द्वारा 2017 में जारी Global Hunger Index में 119 देशों की सूची में भारत को 100वाँ स्थान मिला है। साथ ही भारत को भुखमरी के मामले में गंभीर स्थिति वाले देशों में रखा गया है।
  • कई बार गरीबी से पीड़ित ऐसे लोगों की मजबूरी का फ़ायदा कुछ गिरोह भी उठाते हैं। ऐसे गिरोह संगठित रूप से भिक्षावृत्ति के रैकेट चलाते हैं। ये गिरोह गरीब व्यक्तियों को लालच देकर, डरा-धमकाकर, नशीले ड्रग्स देकर, तथा मानव तस्करी के द्वारा लाए गए लोगों को शारीरिक रूप से अपंग बनाकर भीख मांगने पर मजबूर करते हैं। बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेगिंग एक्ट, 1959 की कुछ धाराओं में फेरबदल कर दिल्ली हाई कोर्ट ने ऐसे गरीब लोगों के जीवन जीने के अधिकार की रक्षा का एक सार्थक प्रयास किया है।
बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेगिंग एक्ट के प्रमुख प्रावधान
  • इस अधिनियम की सबसे बड़ी बात यह है कि यह भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करता है। साथ ही पुलिस प्रशासन को शक्ति देता है कि वह ऐसे भीख मांगने वाले व्यक्ति को पकड़कर किसी पंजीकृत संस्था में भेज सके। इस अधिनियम में भिक्षावृत्ति की परिभाषा में ऐसे किसी भी व्यक्ति को शामिल किया गया है जो गाना गाकर, नृत्य करके, भविष्य बताकर, कोई सामान देकर या इसके बिना भीख मांगता है या कोई चोट, घाव आदि दिखाकर, बिमारी बताकर भीख मांगता है।
  • इसके अलावा जीविका का कोई दृश्य साधन न होने और सार्वजनिक स्थान पर इधर-उधर भीख मांगने की मंशा से घूमना भी भिक्षावृत्ति में शामिल है। इस कानून में भिक्षावृत्ति करते हुए पकड़े जाने पर पहली बार में तीन साल तक के लिये और दूसरी बार में दस साल तक के लिये व्यक्ति को सजा के तौर पर पंजीकृत संस्था में भेजे जाने का नियम है।
  • इसके साथ ही पकड़े गए व्यक्ति के आश्रितों को भी पंजीकृत संस्था में भेजा जा सकता है। यहाँ यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इन संस्थाओं को भी कई प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त हैं, जैसे-संस्था में लाए गए व्यक्ति को सजा देना, कार्य करवाना आदि। इन नियमों का पालन न करने पर व्यक्ति को जेल भी भेजा जा सकता है।
  • ये सभी प्रावधान महाराष्ट्र में सार्वजनिक स्थानों पर भीख मांग रहे और कुष्ठ रोग जैसी बीमारियों से पीड़ित भिखारियों को एक निश्चित स्थान पर ले जाकर उन्हें इलाज व अन्य सुविधाएँ देने के लिये लाये गये थे। लेकिन शीघ्र ही यह कानून गरीबी, अपंगता, गंभीर बीमारियों जैसी किसी मजबूरी के कारण भिक्षावृत्ति अपनाने वालों के खिलाफ हथियार बन गया।
  • प्रशासन ने इसका प्रयोग सार्वजनिक स्थानों से भिखारियों को हटाने के लिये करना शुरू कर दिया। उदाहरण के लिये 2010 में कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन के दौरान दिल्ली से भिखारियों को बाहर निकालने के लिये इसका बड़े पैमाने पर प्रयोग किया गया। दंडात्मक प्रावधानों के तहत भिखारियों को पकड़ा तो जाता है लेकिन उनके पुनर्वास के लिये कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते।
मौजूदा कानून में क्या समस्याएँ हैं तथा यह किस प्रकार मौलिक अधिकारों और मानवीय मूल्यों से असंगत है?
  • पहली समस्या भिक्षावृत्ति की परिभाषा को लेकर है। गायन, नृत्य, भविष्य बताकर आजीविका कमाना कुछ समुदायों के लिये व्यवसाय है। यह मुख्य धारा के व्यवसायों से मेल नहीं खाता, सिर्फ इसलिये ऐसे लोगों को अपराधी मान लेना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। दूसरी बात यह है कि जीविका का कोई दृश्य साधन ना होना और सार्वजनिक स्थान पर भीख मांगने की मंशा से घूमने को अपराध मानना किसी व्यक्ति को गरीब दिखने के कारण दण्डित किये जाने जैसा है।
  • साथ ही यह कानून उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में स्थापित poor houses की विचारधारा को अपनाता है। आपको बता दें कि इन poor houses में गरीब और लाचार लोगों को रखा जाता था। यूरोप में पहले भिक्षावृत्ति का अपराधीकरण किया गया, फिर उन्हें सार्वजनिक स्थानों से पूरी तरह हटा दिया गया।
  • किसी गरीब और मजबूर व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी स्थान पर ले जाकर रखना, और सार्वजनिक स्थान पर जाने से रोकना उस व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन ही तो है। जबकि भारतीय संविधान अनुच्छेद 14 के तहत समानता का अधिकार और अनुच्छेद 19 के तहत स्वतंत्रता का अधिकार देता है।
  • इसके अलावा भारतीय संविधान में प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों, तथा राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों के तहत भारत की एक कल्याणकारी राज्य की रूपरेखा सामने आती है। ऐसे में एक कल्याणकारी राज्य का दायित्व ये होना चाहिए कि वह अपने नागरिकों की भोजन, आवास, रोजगार जैसी जरूरतों को पूरा कर उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करे।
  • यदि हम भारत में भिखारियों की संख्या पर गौर करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 4 लाख से भी अधिक भिखारी हैं। भिखारियों की इतनी बड़ी संख्या दिखाती है कि भारत अपनी कल्याणकारी राज्य की भूमिका निभाने में पूरी तरह सफल नहीं रहा है। इसलिये समाज के सबसे कमजोर और हाशिये पर खड़े तबके को अपराधी घोषित करना किसी भी प्रकार से न्याय संगत नहीं है।
  • इन्हीं सब पक्षों के आधार पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अपना हालिया निर्णय दिया है। हालाँकि भिक्षावृत्ति का रैकेट चलाने वाले गिरोहों के खिलाफ कठोर कदम उठाने के लिये सरकार कोई भी कानून बना सकती है। इस पर हाई कोर्ट ने कोई रोक नहीं लगाई है।
भिक्षावृत्ति जैसी समस्या से निपटने के लिये संभावित उपाय
  • हाई कोर्ट ने भी कहा है कि सबसे पहले ऐच्छिक भिक्षावृत्ति और मजबूरीवश अपनाई गई भिक्षावृत्ति में अंतर किया जाना आवश्यक है। साथ ही इन दोनों से निपटने के लिये अलग-अलग रणनीति बनाए जाने की जरूरत है। इसके लिये वास्तविक स्थिति का पता व्यापक सर्वेक्षण के जरिये लगाया जा सकता है।
  • इस सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों के सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण के आधार पर एक केंद्रीय कानून बनाया जाना चाहिए। इस सन्दर्भ में 2016 में केंद्र सरकार ने पहला प्रयास The Persons in Destitution [Protection, Care, Rehabilitation] Model Bill, 2016 लाकर किया था। लेकिन 2016 के बाद से इस पर चर्चा बंद हो चुकी है। इस पर फिर से काम किये जाने की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी जैसी समस्यायों से मजबूर लोगों तक मौलिक सुविधाओं की पहुँच सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसके लिये वास्तविक लाभार्थियों की पहचान और सेवाओं की लीक प्रूफ डिलीवरी जरूरी है।
  • दूसरी ओर गंभीर बिमारी से पीड़ित, अपंगता से ग्रसित और छोटी उम्र के बच्चे जो भिक्षावृत्ति को अपना चुके हैं, उनके पुनर्वास के लिये व्यापक स्तर पर प्रयास किये जाने की जरूरत है। इसके लिये पुनर्वास गृहों की स्थापना करके उनमें आवश्यक चिकित्सीय सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
  • साथ ही उनकी मौलिक जरूरतों को पूरा करते हुए उन्हें कौशल प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। तभी वे भविष्य में समाज की मुख्य धारा का हिस्सा बन सकेंगे। इस संबंध में बिहार जैसे राज्य में चलने वाली मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना का सन्दर्भ लिया जा सकता है। इस योजना में भिखारी को गिरफ्तार करने के स्थान पर उन्हें Open House में भेजकर उनके पुनर्वास की व्यवस्था किये जाने का प्रावधान है।
  • जहाँ तक बात संगठित तौर पर चलने वाले भिक्षावृत्ति रैकेटों की है तो इनको मानव तस्करी और अपहरण जैसे अपराधों के साथ जोड़ कर देखा जाना चाहिए। दूर-दराज़ के इलाकों से लोगों को खरीदकर या अपहरण कर लाया जाता है और उन्हें भिक्षावृत्ति में लगाया जाता है। इसलिये इससे निपटने के लिये राज्यों के बीच सूचनाएँ साझा करने हेतु एक तंत्र की भी आवश्यकता है।
  • इसके साथ ही इस कमजोर तबके के प्रति संवेदनशीलता भी जरूरी है। अभी हाल ही में एक प्रसिद्ध कम्पनी द्वारा मुंबई स्थित अपनी शाखा के बाहर के खाली पड़े स्थान पर पर नुकीले रॉड लगवा दिए गए ताकि बेघर भिखारी वहाँ सो न सकें। यह घटना बताती है कि इस वर्ग को सरकार द्वारा संरक्षण की कितनी अधिक जरूरत है।
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Milan Tomic

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