सोशल मीडिया का अनैतिक प्रयोग

संदर्भ


वाक् एवं अभिव्यक्ति की मौलिक आज़ादी लोकतंत्र का एक अहम पहलू है। इस अधिकार के उपयोग के लिये सोशल मीडिया ने जो अवसर नागरिकों को दिये हैं, एक दशक पूर्व उनकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी। दरअसल, इस मंच के ज़रिये समाज में बदलाव की बयार लाई जा सकती है। लेकिन, चिंता का विषय है कि मौजूदा वक्त में सोशल मीडिया अपनी आलोचनाओं के लिये चर्चा में रहता है। दरअसल, सोशल मीडिया की भूमिका सामाजिक समरसता को बिगाड़ने और सकारात्मक सोच की जगह समाज को बाँटने वाली सोच को बढ़ावा देने वाली हो गई है।
  • सोशल मीडिया के ज़रिये अफवाह फैलाकर लोगों को भीड़ द्वारा मार देने की घटनाएँ आम हो गईं हैं। हालिया दिनों में देश भर में तीस से ज़्यादा हत्याएँ भीड़ द्वारा की गई हैं। इनमें अधिकतर हत्याएँ सोशल मीडिया पर बच्चा चोर की अफवाह फैलने की वज़ह से हुई हैं।
  • कर्नाटक में बच्चा चोरी के शक में एक इंजीनियर की हत्या का मामला सामने आया था। असम में घूमने निकले दो युवकों को बच्चा चोर समझ कर मार दिया गया था। मध्य प्रदेश के सिंगरौली में एक महिला को बच्चा चोर समझ कर मार डाला गया।
  • इसके अलावा, असम, महाराष्ट्र, झारखंड, तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया गया।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिस सोशल मीडिया को जानकारी साझा करने और नवाचार का अहम मंच समझा गया, वह आज लोगों की मौत की वज़ह क्यों बन रहा है? जिस सोशल मीडिया ने ट्यूनीशिया में लोकतांत्रिक अधिकारों की बहाली के लिये अरब क्रांति की नींव रखी थी, वह सोशल मीडिया आज भारत के लिये चिंता का विषय क्यों बन गया है? एक ऐसे समय में जब देश के कई हिस्सों से धार्मिक सद्भावना बिगड़ने की खबरें आ रही हैं तब सोशल मीडिया एक सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका निभा सकता है। लेकिन, यह चिंता का विषय है कि ऐसा नहीं हो पा रहा। आइये, इन्हीं पहलुओं की पड़ताल करते हैं।

किन-किन रूपों में हो रहा है सोशल मीडिया का दुरुपयोग


दरअसल, सोशल मीडिया का दुरुपयोग कई रूपों में किया जा रहा है। इसके ज़रिये न केवल सामाजिक और धार्मिक उन्माद फैलाया जा रहा है बल्कि, राजनीतिक स्वार्थ के लिये भी गलत जानकारियाँ घर-घर परोसी जा रही हैं। इससे समाज में हिंसा को बढ़ावा तो मिल ही रहा है साथ ही, हमारी सोच को भी नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है।
  • पिछले लोकसभा सत्र में गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर ने एक सवाल का जवाब देते हुए बताया कि 2017-18 में फेसबुक, ट्विटर समेत कई साइटों पर 2,245 आपत्तिजनक सामग्रियों के मिलने की शिकायत की गई थी जिनमें से जून, 2018 तक 1,662 सामग्रियाँ हटा दी गईं थी। फेसबुक ने सबसे ज़्यादा 956 आपत्तिजनक सामग्रियों को हटाया। इनमें ज़्यादातर वे कंटेंट्स थे जो धार्मिक भावनाएँ और राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान का निषेध करने वाले कानूनों का उल्लंघन करते थे। इतनी कम अवधि में बड़ी संख्या में आपत्तिजनक कंटेंट्स का पाया जाना यह बताता है कि सोशल मीडिया का कितना बड़ा दुरुपयोग हो रहा है।
  • एक अनुमान के मुताबिक, हर 40 मिनट में फेसबुक से संबंधित एक पोस्ट को हटाने की रिपोर्ट की जाती है। दरअसल, अधिकतर व्यक्ति बिना सोचे-समझे ही किसी भी पोस्ट को साझा कर देते हैं। दरअसल, व्हाट्सएप और फेसबुक पर कई सोशल ग्रुप बने होते हैं। अक्सर ये ग्रुप्स किसी विचारधारा से प्रेरित होते हैं या किसी खास मकसद से बनाए जाते हैं। अगर यह कहा जाए कि अधिकतर ग्रुप्स राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित होते हैं तो, गलत नहीं होगा। यहाँ बिना किसी रोक-टोक के धड़ल्ले से फेक न्यूज़ बनाए और साझा किये जाते हैं। जाहिर है ये न्यूज़ किसी खास भावना या मकसद से तैयार किये जाते होंगे। फिर यह कहना गलत नहीं होगा कि सामाजिक सौहार्द्र के सामने सोशल मीडिया एक चुनौती बन कर खड़ा है।
  • दूसरी तरफ, सोशल मीडिया के ज़रिये ऐतिहासिक तथ्यों को भी तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। न केवल ऐतिहासिक घटनाओं को अलग रूप में पेश करने की कोशिश हो रही है बल्कि, आज़ादी के सूत्रधार रहे नेताओं के बारे में भी गलत जानकारियाँ बड़े स्तर पर साझा की जा रही हैं।
  • राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के बारे में अनेक भ्रांतियाँ फैलाना इसी का एक पहलू है। मुमकिन है कि राजनीतिक फायदा हासिल करने के लिये ऐसा किया जा रहा हो।
  • विश्व आर्थिक मंच ने भी अपनी जोखिम रिपोर्ट में बताया है कि सोशल मीडिया के ज़रिये झूठी सूचना का प्रसार उभरते जोखिमों में से एक है। लेकिन, सवाल है कि एक प्रगतिशील समाज और देश के लिये यह कितना उचित है कि वह आए दिन गलत सूचनाओं को बनाए और साझा करे? यकीनन, यह न केवल हमारी प्रगति की राह में रुकावट है बल्कि, हमारे प्रगतिशील होने के दावों पर भी सवालिया निशान लगाता है। ऐसे में ज़रूरी हो जाता है कि हमारी सरकारें इसमें दखल दें और इस पर लगाम लगाने की भरसक कोशिश करें।

क्या हमारी सरकारों ने इस पर रोक लगाने के लिये कोई पहल की है?


दरअसल, सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद सोशल मीडिया के ज़रिये अनैतिक प्रयोग पर लगाम नहीं लग पा रही। इसके लिये भारत सरकार ने साइबर सुरक्षा नीति और सूचना तकनीक कानून भी बनाया है। लेकिन, इस कानून के क्रियान्वयन में दिक्कत आने की वज़ह से सोशल मीडिया पर अफवाहों को रोकने में कामयाबी नहीं मिल पा रही।
  • हाल ही में केंद्र सरकार ने सूचना तकनीक कानून की धारा 79 में संशोधन का मसौदा तैयार किया है। इसके तहत फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियाँ अब अपनी ज़िम्मेदारियों से नहीं भाग सकेंगी। साथ ही नए दिशा-निर्देश जारी करने की तैयारी है। इसके तहत आईटी कंपनियाँ फेक न्यूज़ की शिकायतों पर न केवल अदालत और सरकारी संस्थाओं बल्कि आम जनता के प्रति भी जवाबदेह होंगी।
  • जाहिर है, आईटी कंपनियों की जवाबदेहिता तय करने की नीयत से यह संशोधन किया जा रहा है ताकि ये कंपनियाँ भी सतर्क हो जाएँ। इसके अलावा, गृह मंत्रालय ने राज्य पुलिस बलों और खुफिया ब्यूरो को इस पर एक्शन लेने के लिये सोशल यूनिट्स बनाने के निर्देश दिये हैं।

सोशल मीडिया पर अफवाहों को रोकने के लिये दूसरे देशों में क्या प्रावधान हैं?


गौरतलब है कि सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ का मामला केवल भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि, दुनिया के दूसरे देश भी इस समस्या से खासा परेशान हैं। एशिया से लेकर पश्चिमी देश तक इस समस्या से दो-चार हो रहे हैं।
  • मलेशिया में इसके लिये दोषी व्यक्ति को 6 साल की सज़ा देने का प्रावधान है, जबकि थाईलैंड में सात साल की सज़ा का प्रावधान है।
  • पड़ोसी देश पाकिस्तान में गलत खबर के ज़रिये किसी की भावना को ठेस पहुँचाने वाले व्यक्ति को सज़ा और जुर्माना दोनों का ही प्रावधान है।
  • इसके अलावा सिंगापुर, चीन, फिलीपिंस आदि देशों में भी गलत खबरों पर रोक लगाने के लिये सख्त कानून बनाए गए हैं।

भारत में सोशल मीडिया के सकारात्मक प्रयास


हालाँकि यह सच है कि भारत सोशल मीडिया की वज़ह से फैल रही नफरतों से संघर्ष कर रहा है। लेकिन यह भी सच है कि भारत में सोशल मीडिया के ज़रिये कई सकारात्मक पहलों को भी अंजाम दिया गया है।
  • सोशल मीडिया के ज़रिये ही 2011 में अन्ना आंदोलन को मज़बूती मिली और यह आंदोलन बेहद सफल रहा था।
  • दिल्ली में निर्भया कांड के बाद एक सफल आंदोलन और रोहित वेमूला प्रकरण पर छात्रों की लामबंदी आदि जैसे प्रयोग बेहद सफल रहे थे।
लेकिन मौजूदा वक्त में गलत इस्तेमाल की वज़हों से सोशल मीडिया ज़्यादा चर्चा में रहने लगा है। एक तरफ हमारी सरकार डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रम लाकर देश की तस्वीर बदलने का प्रयास कर रही है, तो दूसरी तरफ हम इस कार्यक्रम के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से का दुरुपयोग कर सरकार और देश को ही चुनौती देने का काम कर रहे हैं। जान-माल की परवाह किये बिना अगर हम मूर्खता की मिसाल इसी तरह कायम करते रहे तो हमें समझना होगा कि समाज और देश को हम पतन के मुहाने पर ले जा रहे हैं।

आगे की राह


सोशल मीडिया के दुरुपयोग का मुद्दा ऐसा है जिसकी अब अनदेखी नहीं की जा सकती है। गलत विचारों को साझा करने से देश की आंतरिक सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। ऐसे में इसके खिलाफ कड़े कानून की सख्त ज़रूरत है।
  • देश जैसे-जैसे आधुनिकीकरण के रास्ते पर बढ़ रहा है चुनौतियाँ भी बढ़ती ही जा रही हैं। लिहाज़ा, भारत को जर्मनी जैसे उस कठोर कानून की ज़रूरत है जो सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री का इस्तेमाल करने वालों पर शिकंजा कसने के लिये बनाया गया है।
  • हालाँकि भारत भी इस तरफ अपना कदम बढ़ा चुका है लेकिन देखने वाली बात होगी कि यह कितना कारगर साबित हो सकता है।
  • जर्मनी में यह भी प्रावधान है कि कंपनियों को हर 6 महीने बाद सार्वजनिक रूप से बताना होगा कि उन्हें कितनी शिकायतें मिलीं और उन पर किस प्रकार संज्ञान लिया गया। इसके अलावा, उन्हें उस यूज़र की पहचान भी बतानी होगी, जिस पर लोगों की मानहानि या गोपनीयता भंग करने का आरोप लगाया गया है। जानकारों का मानना है कि यह कानून लोकतांत्रिक देशों में अब तक का सबसे कठोर कानून है।
  • इसके अलावा, ‘सोशल मीडिया इंटेलीजेंस’ के ज़रिये सोशल मीडिया गतिविधियों का विश्लेषण करते रहना और शिकायत पर उचित कार्रवाई करना भी एक उपाय हो सकता है। इससे आपत्तिजनक सामग्रियों को बिना देर किये ही हटाया जा सकेगा। सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा मिलकर जागरूकता संबंधी कार्यक्रम और सेमिनार का आयोजन कर भी इस समस्या पर अंकुश लगाया जा सकता है।

निष्कर्ष

  • हमें समझना होगा कि ग्रामीण इलाकों में पगडंडियों के सहारे नदियों को पार कर बच्चे देश की साक्षरता दर बढ़ाने के लिये पढ़ने जाते हैं, देश के अलग-अलग कोने में मज़दूर वर्ग देश की जीडीपी को बढ़ाने के लिये मेहनत करते हैं। लेकिन हम लोग संकीर्ण मानसिकता के कारण उन बच्चों और मज़दूरों की मेहनत पर पानी फेर देते हैं। सुविधाओं से लैस घरों में बैठे-बैठे ही हम देश में नफरत के बीज बो रहे हैं। आपसी भाईचारे को खत्म कर हम देश के लिये चुनौती बन रहे हैं।
  • पिछले साल भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान ग्वालियर के अध्ययन में बताया गया कि भारत आने वाले 89 फीसदी पर्यटक सोशल मीडिया के ज़रिये ही भारत के बारे में जानकारियाँ प्राप्त करते हैं। यहाँ तक कि इनमें से 18 फीसदी लोग तो भारत आने की योजना ही तब बनाते हैं जब सोशल मीडिया से प्राप्त सामग्री इनके जहन में भारत की अच्छी तस्वीर पेश करती है।
  • ऐसे में यदि सोशल मीडिया के ज़रिये भारत की नकारात्मक छवि सामने आती है तो इससे आर्थिक नुकसान के साथ-साथ भारत की प्रतिष्ठा भी दाँव पर लगेगी। इसलिये यह ज़रूरी है कि हम देशहित को प्राथमिकता दें और सोशल मीडिया का बेहतर तरीके से प्रयोग कर दुनिया के सामने भारत की बेहतर तस्वीर पेश करें ताकि आने वाली पीढ़ी को हम एक अनुशासित और साफ-सुथरा माहौल मुहैया करा सकें।
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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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