नेशनल सैंपल सर्वे कार्यालय द्वारा रोजगार पर एकत्रित डाटा को छुपाने के सरकारी प्रयासों ने इसे विवादास्पद बना दिया है। यही कारण है कि चुनावों में भी यह मुद्दा छाया हुआ है। सर्वे के डाटा की जितनी भी जानकारी मिल सकी है, उससे पता चलता है कि 2017-18 में बेराजगारी की दर 6.1 प्रतिशत की ऊँचाई पर थी। देखा जा रहा है कि शिक्षा के बढ़ते स्तर के साथ बेरोजगारी की दर अधिक बढ़ी है।
विनिर्माण उद्योग की स्थिति बहुत खराब है। पिछले 25 वर्षों में रोजगार की दृष्टि से इस उद्योग की भागीदारी 10 से 20 फीसदी रही है। यह वृद्धि अधिकतर अनौपचारिक फर्मों में होती रही है। अभी भी स्थिति लगभग वैसी ही है। औपचारिक फर्मों में श्रमिकों को अनौपचारिक कांट्रैक्ट पर लिया जा रहा है। इसमें उनको भुगतान भी कम किया जाता है, और भत्ते वगैरह भी नहीं मिलते हैं।
क्या किया जा सकता है ?
- एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार औपचारिक क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने के लिए उन पर कर भार कम किया जाना चाहिए। दूसरे, अनौपचारिक तरीके से किए जा रहे श्रमिक अनुबंधों की नियमित जांच होनी चाहिए।
- भारत सरकार को चाहिए कि वे विनिर्माण क्षेत्र के साथ-साथ अन्य निजी क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसर बढ़ाने में आने वाली बाधाओं को दूर करने के उपाय करे। बुनियादी और तकनीकी ढांचे के विकास के साथ ही ईज़ ऑफ डूईंग बिजनेस और ऋण सुविधाओं को आसान बनाना होगा। कठोर श्रमिक कानून में सुधार करना होगा।
- वैश्वीकरण ने अनेक छोटे और मझोले उद्यमों के लिए अंतरराष्ट्रीय वेल्यू चेन में अनेक अवसर उपलब्ध करा दिए हैं। भारत सरकार चाहे तो इन उद्यमों की ओर मदद का हाथ बढ़ाकर, इन्हें अपने उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचने के अवसर दे सकती है। इस क्षेत्र में चीन के ताओबा ग्रामों का उदाहरण लिया जा सकता है। ई-कामर्स के माध्यम से इनका व्यापार बहुत बढ़ा है।
- सार्वजनिक क्षेत्र में बुनियादी ढांचों के साथ-साथ स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में ग्रीन जॉब्स विकसित किए जा सकते हैं। ये ऐसे रोजगार होंगे, जिनसे पर्यावरण को भी लाभ पहुँचेगा।
- अमेरिका के गरीब क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाने पर प्रकाशित एक पत्र में बताया गया है कि किस प्रकार सरकार सीधे रोजगार न देकर स्थानीय अलाभकारी संगठनों के माध्यम से 18 माह का रोजगार देती है। 18 महीने के बाद उस कर्मचारी को निजी क्षेत्र में काम मिलता है, जिसके एवज में अगले 18 महीने तक सरकार उसके वेतन पर 50 प्रतिशत की सब्सिडी देती है। इस प्रकार से 18 महीने के प्रशिक्षण में एक कर्मचारी को तैयार कर लिया जाता है।
- भारत के संदर्भ में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप जैसी योजना चलाई जा सकती हैं। उदाहरण के लिए ‘प्रथम’ जैसी संस्था है, जो गरीब नौजवानों को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान कर रही है।
पीपीपी से महिला कामगारों की भागीदारी बढ़ाई जा सकती है। 2018 में इस क्षेत्र के 188 देशों में भारत का 169वां स्थान था, जबकि चीन 61वें स्थान पर था। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ स्थितियों को अनुकूल बनाकर आसानी से उसके फल प्राप्त किए जा सकते हैं। महिलाओं की अतिरिक्त कमाई से घर की आर्थिक स्थिति अच्छी होती जाती है। इसके लिए सरकार की ओर से बच्चों की देख-रेख, वृद्धों की सेवा, नर्सिंग, सौदर्य-उद्योग आदि में व्यावसायिक प्रशिक्षण चलाया जाना चाहिए।
रोबोट, ई-कॉमर्स और एआई से परंपरागत रोजगार खत्म हो रहे हैं। अतः ऐसा कार्यबल तैयार करने की जरूरत है, जो संज्ञानात्मक कौशल बनाए रख सके। इसके लिए प्रत्येक स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारा जाना चाहिए।
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