भारत में ई-कॉमर्स

संदर्भ

पिछले कुछ दिनों से ई-कॉमर्स यानी कि इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स सुर्खियों में है। इसकी वज़ह से एक ओर जहाँ राष्ट्रीय ई-कॉमर्स पॉलिसी का ड्राफ्ट खबरों में रहा तो वहीं दूसरी ओर, ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी फ्लिपकार्ट का अधिग्रहण अमेरिकी कंपनी वॉलमार्ट द्वारा किया गया। देश में एक तरफ, जहाँ ऑन-लाइन शॉपिंग का क्रेज बढ़ रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ, उपभोक्ताओं को इससे नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। लोगों की इन्हीं समस्याओं को देखते हुए सरकार ने इस पर प्रभावी कदम उठाने के लिये राष्ट्रीय ई-कॉमर्स पॉलिसी लाने का फैसला किया है। इसके लिये सरकार ने एक टास्क फोर्स का गठन किया है, जिसने ई-कॉमर्स पॉलिसी पर एक ड्राफ्ट तैयार करके सरकार को सौंप दिया है। इस ड्राफ्ट में कई सुझाव दिये गए हैं जिनको यदि सरकार स्वीकार कर लेती है तो ऑनलाइन शॉपिंग के तौर-तरीके पूरी तरह बदल जाएंगे। इनमें डिस्काउंट देने की प्रक्रिया, नए प्रोडक्ट की उपलब्धता और शिकायतों का निवारण कैसे सरल तरीके से किया जाए इत्यादि मुद्दे शामिल हैं। बहरहाल, इस ड्राफ्ट का अध्ययन करने के लिये वाणिज्य मंत्रालय ने एक थिंक टैंक का गठन किया है। 
इस आर्टिकल के माध्यम से हम कई सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे, जैसे- ई-कॉमर्स किसे कहते हैं, इसके क्या लाभ हैं, इससे चुनौतियाँ क्या हैं और इसमें आगे की राह क्या है? तो चलिये एक-एक कर इन सभी पहलुओं पर विचार करते हैं।

ई-कॉमर्स क्या है?

  • दरअसल, इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स को ही शॉर्ट फॉर्म में ई-कॉमर्स कहा जाता है। यह ऑनलाइन व्यापार करने का एक तरीका है। इसके अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम के द्वारा इंटरनेट के माध्यम से वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री की जाती है।
  • आज के समय में ई-कॉमर्स के लिये इंटरनेट सबसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। यह बुनियादी ढाँचे के साथ-साथ उपभोक्ता और व्यापार के लिये कई अवसर भी प्रस्तुत करता है। इसके उपयोग से उपभोक्ताओं के लिये समय और दूरी जैसी बाधाएँ बहुत मायने नहीं रखती हैं।
  • इसमें कंप्यूटर, इंटरनेट नेटवर्क, वर्ल्डवाइड वेव और ई-मेल को उपयोग में लाकर व्यापारिक क्रियाकलापों को संचालित किया जाता है।
यहाँ सवाल यह उठता है कि ई-कॉमर्स में उपभोक्ता यानी कि कंज्यूमर और बिज़नेसमैन के बीच संबंधों की प्रक्रिया कैसे सुचारु रूप से संचालित होती है? आपको बता दें कि पॉपुलर तरीके से इनके बीच कई प्रकार के मॉडल कार्य करते हैं जिसमें कुछ प्रमुख हैं।
  • इनमें पहला है B2B यानी कि बिज़नेस टू बिज़नेस मॉडल। इसके अंतर्गत एक कंपनी किसी दूसरी कंपनी या फर्म को सामान बेचती है। इसके अंतर्गत वे कंपनियाँ या फर्म आते हैं जो खुद के प्रयोग के लिये सामान खरीदते हैं या फिर कच्चा माल खरीदकर उससे सामान तैयार करते हैं।
  • दूसरे प्रकार का मॉडल है B2C यानी कि बिज़नेस टू कंज्यूमर। इसके तहत कंज्यूमर किसी कंपनी से सीधे सामान खरीदता है।
  • इसी प्रकार तीसरे तरह का मॉडल है C2C यानी कि कंज्यूमर टू कंज्यूमर। इसके तहत कंज्यूमर सीधे कंज्यूमर से संपर्क करता है। इसमें कंपनियों की कोई भूमिका नहीं होती है।
  • चौथे प्रकार का मॉडल है C2B यानी कि कंज्यूमर टू बिज़नेस। इसमें कंपनी सीधे कंज्यूमर से संपर्क करती है।
  • इसी तरह बाज़ार में बढ़ती सामानों की मांग और उसकी आपूर्ति को देखते हुए ई-कॉमर्स की ऑनलाइन शॉपिंग में दो तरह के मॉडल अब ज़्यादा पॉपुलर हो रहे हैं जिनमें पहला है- मार्केट प्लेस मॉडल| इस मॉडल में ऑनलाइन कंपनियाँ केवल एक प्लेटफॉर्म उपलब्ध करा देती हैं, जहाँ से कंज्यूमर अपनी जरूरत के मुताबिक सामान खरीद सकता है। जैसे कि अमेजन, स्नैपडील, फ्लिपकार्ट इत्यादि। इसमें अन्य ऑनलाइन कंपनियों का कोई रोल नहीं होता है। इसी प्रकार दूसरा है इन्वेंटरी मॉडल| इसके तहत ऑनलाइन कंपनियाँ इस प्लेटफॉर्म पर अपनी कंपनी के द्वारा सामान बेचती हैं। इसमें अलीबाबा का नाम सबसे ऊपर आता है।   

ई-कॉमर्स के लाभ

  • गौरतलब है कि ई-कॉमर्स के ज़रिये सामान सीधे उपभोक्ता को प्राप्त होता है। इससे बिचौलियों की भूमिका तो समाप्त होती ही है, सामान भी सस्ता मिलता है। इससे बाज़ार में भी प्रतिस्पर्द्धा बनी रहती है और ग्राहक बाज़ार में उपलब्ध सामानों की तुलना भी कर पाता है जिसके कारण ग्राहकों को उच्च गुणवत्ता वाला सामान मिल पाता है।
  • एक तरफ ऑनलाइन शॉपिंग में ग्राहकों की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार तक पहुँच आसान हो जाती है तो वहीं दूसरी तरफ, ग्राहकों का समय भी बचता है।
  • ई-कॉमर्स के ज़रिये छोटे तथा मझोले उद्यमियों को आसानी से एक प्लेटफॉर्म मिल जाता है जहाँ वे अपने सामान को बेच पाते हैं। साथ ही इसके माध्यम से ग्राहकों को कोई भी स्पेसिफिक प्रोडक्ट आसानी से मिल सकता है।
  • ई-कॉमर्स के ज़रिये परिवहन के क्षेत्र में भी सुविधाएँ बढ़ी हैं, जैसे ओला और ऊबर की सुविधा। इसके अलावा मेडिकल, रिटेल, बैंकिंग, शिक्षा, मनोरंजन और होम सर्विस जैसी सुविधाएँ ऑनलाइन होने से लोगों की सहूलियतें बढ़ी हैं। इसलिये बिज़नेस की दृष्टि से ई-कॉमर्स काफी महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है।
  • ई-कॉमर्स के आने से विज्ञापनों पर होने वाले बेतहाशा खर्च में भी कमी देखी गई है| इससे भी सामान की कीमतों में कमी आती है।
  • इसी तरह एक ओर, जहाँ शो-रूम और गोदामों के खर्चों में कमी आती है, तो वहीं दूसरी ओर, नए बाज़ार की संभावनाएँ भी  बढ़ती हैं। साथ ही इससे वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति में तीव्रता आती है और ग्राहकों की संतुष्टि का ध्यान भी रखा जाता है।
इन्हीं तमाम खूबियों की वज़ह से ई-कॉमर्स से अनेक लाभ मिलते हैं किन्तु इससे कुछ समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं जिनको समझना ज़रूरी है।

चुनौतियाँ 

  • गौरतलब है कि ऑनलाइन शॉपिंग को लेकर कंज्यूमर्स के मन में हमेशा संदेह का भाव बना रहता है कि उन्होंने जो प्रोडक्ट खरीदा है वह सही होगा भी या नहीं। इस वर्ष सरकार को ई-कॉमर्स से जुड़ी बहुत सी वेबसाइट्स के खिलाफ शिकायतें भी मिलीं, जिनमें कंज्यूमर का कहना था कि उन्होंने जो सामान बुक किया था उसके बदले उन्हें किसी और सामान की डिलीवरी की गई या फिर वह सामान खराब था।
  • इसी तरह कई बार लोगों की शिकायतें रहती हैं कि अब वे कहाँ इसके खिलाफ शिकायत करें।
  • एक तरफ, जहाँ इसको लेकर किसी ठोस कानून का अभाव है, तो वहीँ दूसरी तरफ, लोगों में जागरूकता की कमी भी दिखती है।
  • स्पष्ट नियम और कानून न होने की वज़ह से छोटे और मझोले उद्योगों के सामने कुछ चुनौतियाँ भी उत्पन्न हो सकती हैं| वे बाज़ार की इस अंधी दौड़ में इन बड़ी-बड़ी कंपनियों का सामना नहीं कर पाएंगे। ऐसे में बेरोज़गारी के बढ़ने की आशंका भी जताई जा रही है।
  • ऑनलाइन शॉपिंग के मामले में सुरक्षा को लेकर लोगों ने पहले से ही चिंता जाहिर की है| उनका मानना है कि ये कंपनियाँ उनका डेटा कलेक्ट कर रही हैं, जो कि चिंता की बात है।
  • इसी प्रकार ऑनलाइन शॉपिंग में लोगों के क्रेडिट या डेबिट कार्ड की क्लोनिंग कर उनके बैंक बैलेंस से रुपए निकाल लेना या फिर हैकरों के द्वारा बैंकिंग डेटा की हैकिंग कर लेना भी एक समस्या है। इतना ही नहीं, ऑनलाइन शॉपिंग के क्षेत्र में कार्यरत कुछ बड़ी कंपनियाँ अब सामानों की डिलीवरी ड्रोन से करने का मन बना रही हैं, जिसको लेकर सरकार और लोगों के चेहरे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट दिख रही हैं।

आगे की राह 

आज देश में ई-कॉमर्स सेक्टर से जुड़ा व्यापार करीब 25 अरब डॉलर का है। ऐसा अनुमान है कि अगले 10 वर्षों में यह व्यापार करीब 200 अरब डॉलर का हो जाएगा। अब सवाल यह उठता है कि इस क्षेत्र में इतनी तेज़ वृद्धि की आखिर वज़ह क्या है? आपको बता दें कि एक ओर, देश की जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर, स्मार्टफोन और डेटा टैरिफ सस्ते हो रहे हैं। इतना ही नहीं, नेटवर्क कनेक्टिविटी में वृद्धि होना भी इसका एक कारण है। इन्हीं सब वज़हों को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि यह देश के लिये एक अवसर है, किंतु समस्या यह है कि ई-कॉमर्स को लेकर देश में अब तक कोई स्पष्ट नीति नहीं है। इस क्षेत्र में बढ़ रही संभावनाओं के मद्देनज़र सरकार को एक स्पष्ट नीति लाने की ज़रूरत है। जिस तरह से ई-कॉमर्स क्षेत्र की कंपनियाँ लोगों का डेटा कलेक्ट कर रही हैं उससे लोगों की चिंता बढ़ गई है। इधर डेटा सुरक्षा को लेकर गठित जस्टिस श्रीकृष्ण समिति ने भी सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। कुल मिलाकर, अब समय आ गया है कि सरकार इस पर विचार करे। इसी प्रकार ई-कॉमर्स पर गठित टास्क फोर्स के द्वारा तैयार किये गए ड्राफ्ट में उल्लिखित बातों पर भी अमल किये जाने की ज़रूरत है।
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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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