आतंकवाद
या
आतंकवाद की समस्या
“जहाँ भी जाता हूँ वीरान नज़र आता है
खून में डूबा हर मैदान नज़र आता है
कैसे है वक्त कि दिन के उजाले में भीन
नहीं इंसान को इंसान नज़र आता है।”
कवि भी उपर्युक्त पंक्तियाँ समाज में बढ़ते आतंकवाद की और इंगित करती हैं। आतंकवाद एक अत्यंत भयावह समस्या है जिसमें पूरा विश्व ही जूझ रहा है। आतंकवाद केवल विकासशील या निर्धन राष्ट्रों की समस्या हो, ऐसी बात नहीं। विश्व का सबसे शक्तिशाली और समृद्ध राष्ट्र अमेरिका भी इससे बच नहीं पाया है। कुछ वर्षों पहले जिस प्रकार उस पर आतंकवादी हमला हुआ, उससे उसकी जड़े हिल गई।
‘आतंक’ कर अर्थ है – भय अथवा दहशत। ऐसी अमानवीय तथा भय उत्पन्न करने वाली ऐसी गतिविधि जिसका उद्देश्य निजी स्वार्थ पूर्ति या अपना दबदबा बनाए रखने के उद्देश्य से या बदला लेने की भावना से किया गया काम हो – आतंकवाद कही जाती है। इस प्रकार आतंकवाद मूल में कुत्सित स्वार्थ वृति, घ्रणा, द्वेष, कटुता और शत्रुता की भावना होती होती है। अपना राजनितिक दबदबा बनाए रखना, अपने धर्म को अन्य धर्मों से श्रेष्ठ सिद्ध करने की भावना तथा कट्टर धर्माधता भी आतंकवाद को बढ़ावा देता है। आज विश्व में जिस प्रकार का आतंकवाद फल-फूल रहा है, उसके पीछे सांप्रदायिक धर्माधता एवं कट्टरता एक प्रमुख कारण है। आज विश्व में कुछ इस प्रकार के संगठन विद्द्यमान हैं जिनका उद्देश्य ही आतंकवाद को फैलाना है। वे इस आतंकवाद के सहारे ही अपना वर्चस्व सिद्ध करना चाहते हैं। इस प्रकार के संगठन युवाओं को दिशा भ्रमित करके, उन्हें धर्म, राजननीति या सांप्रदायिकता के नाम पर गुमराह करके उनके हृदय में क्रूरता, कट्टरता तथा घृणा का ज़हर घोलकर बेगुनाओं का खून भने के लिए प्रेरित बहाने में सफल हो जाते हैं। ‘फ़िदाइन’ हमले इस बात का प्रमाण हैं कि ये दिशा भ्रमित युवक अपनी जान पर खेलकर भी खून की होली खेलने में नहीं झिझकते और मासूमों का खून बहाकर भी इनका कलेजा नहीं पसीज़ता। इनका हृदय पाषाण जैसा कठोर हो जाता है, इनकी मानवीय चेतना लुप्त हो जाती है और वे किसी भी प्रकार का घिनोना कृत्या करना स्वयं को धन्य समझते हैं।
औसमां बिन लादेन जैसे आतंकवादी आज पूरे विश्व के लिए आतंक का चेहरा बने हुए है। अमेरिका को भी उसे पकड़ने में दस सालों से ज्यादा लगे। आज भी उसका आतंकी नेटवर्क पूरे विश्व में फैला हुआ है। अमेरिका के दो टावरों को ध्वस्त करने की योजना भी उसी ने बनाई थी।
भारत भी आतंकवाद से जूझता आ रहा है। पहले पंजाब में आतंकवाद पनपा। जब वहां समाप्त हुआ तो आज देश के अनेक महानगरों में फैला गया है। मुंबई बमकांड, असम के उल्फा उग्रवादी संगठन, बोडो संगठन, नागालैंड, मिजोरम,सिक्किम आदि राज्यों में नक्सली संगठन भारत की एकता, अखंडता के लिए खतरनाक गतिविधियाँ होती रहती हैं। अनेक सैनिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। जब आतंकवादिओं ने भारतीय संसद पर ही हमला कर दिया, तो भला और कौन सा स्थान सुरक्षित होगा।
आतंकवाद के कारण ही कश्मीर के लाखों पंडित अपना घर-बार तथा व्यापर छोड़ने को विवश हुए तथा आज विस्थापितों का जीवन जीने को मजबूर हैं। जम्मू कश्मीर के आतंकवादी संगठनों को अनेक ऐसे देशों से सहायता एवं प्रशिक्षण मिलता है जो नहीं चाहते कि भारत उन्नति करे तथा एक शक्ति के रूप में उभरे। इस अमानुषिक कार्य में पडोसी देशों का भी सहयोग है, अमेरिका जानते हुए भी उन्हें सेन्य सहायता दे रहा है जिससे उसके हौंसले और बुलंद हो गये हैं। वहआतंकवाद
को बढ़ावा देने की लिए धार्मिक भावनाओं का सहारा लेते है। जम्मू में रघुनाथ मंदिर और गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकवादी हमले इसका प्रमाण हैं।
को बढ़ावा देने की लिए धार्मिक भावनाओं का सहारा लेते है। जम्मू में रघुनाथ मंदिर और गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकवादी हमले इसका प्रमाण हैं।
आतंकवाद के कारण मानवता का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। आतंकवाद को मिटने के लिए दृढ़ संकल्प तथा कठोर कार्यवाही आवश्यक है। यदि भारत को अपनी छाती से आतंकवाद को मिटाना है तो उसे विश्व जनमत की अवहेलना करके भी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को समूल नष्ट करना होगा तथा आतंकवाद को जड़ से उखाड़ना फेंकने के लिए जिस प्रकार की कार्यवाही की आवशयकता हो उसके लिए कृतसंकल्प होना पड़ेगा। इस समस्या का समाधान शांति से संभव नहीं है क्योंकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
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