भारत में लगातार चलने वाले चुनाव से होने वाले नुकसान को देखते हुए एक साथ चुनाव कराने पर काफी समय से चर्चा चल रही है। प्रधानमंत्री ने भी इस पर अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हुए ‘एक राष्ट्र एक चुनाव‘ के नारे को ही समर्थन दिया है।
- हाल ही में संसदीय स्थायी समिति ने द्विचक्रीय चुनाव प्रणाली का सुझाव रखा है। इस प्रणाली में–
- एक चुनावों में लोक सभा और भारत के आधे राज्यों में चुनाव होगें।
- इसके ढाई साल बाद बचे हुए राज्यों के चुनाव कराए जाऐंगे।
- इस प्रणाली से कई लाभ हो सकते हैं –
- उदाहरण के लिए, चुनाव आयोग ने सुझाव रखा है कि अगर किसी राज्य की सरकार बीच में ही गिर जाती है, तो उस राज्य में पाँच वर्ष की अवधि में से बचे हुए समय के लिए ही चुनाव कराया जाएगा। चुनाव आयोग के इस प्रस्ताव के प्रति विरोध और नाराजगी देखने को मिल सकती है। साथ ही इसमें धन का भी अपव्यय होगा।
- दो चक्र वाली चुनाव प्रणाली होने से ऐसे राज्य के चुनाव को द्वितीय चक्र में कराया जा सकेगा, जिससे नवनिर्वाचित सरकार को भी पाँच वर्ष पूरे करने का अवसर मिलेगा। जरूरत पड़ने पर लोकसभा के लिए भी ऐसा किया जा सकेगा।
- दो चक्र में होने वाले चुनावों से प्रजातंत्र का मूल उद्देश्य भी पूरा हो सकेगा। इससे जनता को केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों की व्याख्या करने का पर्याप्त समय मिल सकेगा। साथ ही, केन्द्र सरकार के सत्र के बीच में होने वाले चुनावों का जनमत संग्रह अधिक भरोसेमंद होगा।
- आज समय-समय पर होने वाले छोटे-छोटे चुनावों से राजनीति पर जनता की मजबूत पकड़ नही बन पाती है। उनके चुनाव में चेंक एण्ड बेलेन्स का अभाव रहता है। दो चक्र में होने वाले चुनावों से प्रजातंत्र का लक्ष्य पूरा हो सकेगा।
- गौरतलब है कि अमेरिका में भी इस चुनाव प्रक्रिया को अपनाया गया है। कुछ सीनेटर और राज्यों के चुनाव द्वितीय चरण में होते है। इससे संघीय सरकार अपनी छवि के प्रति सतर्क रहती है।
संसदीय स्थायी समिति के इस प्रस्ताव को मानकर नीति आयोग ने इस पर उधेड़बुन शुरू कर दी है। अब एक राष्ट्र दो चुनाव के नए मुहावरे के चलन की उम्मीद की जा सकती है।
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