2013 में लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम के पारित किए जाने के लगभग पाँच वर्षों बाद अंततः लोकपाल के रूप में पी.सी.घोष और अन्य आठ सदस्यों की नियुक्ति की गई है।
प्रशासनिक सुधार की दिशा में यह एक अभूतपूर्व कदम है। साथ ही यह 2003 में भ्रष्टाचार के विरुद्ध जंग छेड़ने पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में किए गए अपने वायदे पर भारत की प्रतिबद्धता को भी दिखाता है। भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम 1968 में ही छेड़ दी गई थी, जिसे अन्ना हजारे के अनशन ने क्रांति का रूप दे दिया था।
एक नजर संस्था के अधिकारों पर
- लोकपाल एक स्वायत्त संस्था है।
- संस्था को प्रधानमंत्री, सांसदों, सरकारी अधिकारियों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैकों एवं उपक्रमों, गैर सरकारी संगठनों (जो 10 लाख से अधिक का विदेशी चंदा स्वीकृत करते हैं) पर भ्रष्टाचार के मामले में कार्यवाही करने का अधिकार होगा।
- इस कानून में भ्रष्टाचार की रिपोर्ट करने वालों को सुरक्षा दिए जाने का प्रावधान है।
- भ्रष्ट तरीके से अर्जित की गई संपत्ति को जब्त करने का अधिकार तब भी होगा, जब अभियोग विचाराधीन हो।
- स्वयं भी किसी मामले के किसी शिकायत के गलत पाए जाने पर लोकपाल, 2 लाख रुपये तक का जुर्माना शिकायतकर्ता पर लगा सकता है।
- लोकपाल के आदेश पर भ्रष्टाचार के मामलों को तेजी से निपटाने के लिए विशेष न्यायालय गठित किए जा सकेंगे।
- सीबीआई और अन्य जाँच एजेंसियों पर नजर रखने का अधिकार होगा।
अभी तक केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की सुरक्षा मिलने के बावजूद सीबीआई के कामकाज में होने वाले सरकारी हस्तक्षेप में कमी नहीं आई है। लोकपाल के होने से स्थिति में सुधार की उम्मीद की जा सकती है।
- लोकपाल को स्वतंत्र रूप से किसी मामले की जाँच करने, गवाहों से पूछताछ करने का अधिकार होगा।
- मामले को छः माह के भीतर निपटाने के लिए वह सभी आवश्यक दिशानिर्देश दे सकता है।
- भ्रष्टाचार के मामले में जुड़े किसी अधिकारी को लोकपाल की अनुमति के बिना स्थानांतरित नहीं किया जा सकेगा।
कुछ सवाल
- भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में अब राष्ट्रीय स्तर पर सीबीआई, अन्वेषण ब्यूरो और लोकपाल मुख्य रूप से काम करेंगे। क्या अन्य दो संस्थाओं के रहते लोकपाल को इतनी स्वतंत्रता होगी कि वह नागरिकों के संतोष तक भ्रष्टाचार का सफाया कर सके ?
लोकपाल को ग्रुप ए और बी के सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ जाँच करने का अधिकार है। इससे सीबीआई का इन दो वर्ग समूहों पर जाँच का अधिकार समाप्त नहीं हो जाता। लोकपाल अधिनियम भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध जाँच शुरू करने में सीबीआई की मदद ले सकने का अधिकार देता है। सवाल यह है कि जब लोकपाल के पास जाँच-पड़ताल के लिए अपना दल होगा जब वह भ्रष्टाचार सुरक्षा अधिनियम, 1988 के अधीन किसी मामले को शुरू करने के लिए सीबीआई की मदद क्यों लेगा ? अगर मामला पहले ही सीबीआई के अधीन पंजीकृत है, तो ऐसी स्थिति में आगे की कार्यवाही पर कोई स्पष्टता नहीं है। दूसरे, कानूनी रूप से सरकार, लोकपाल के अलावा, प्रारंभिक जाँच का आदेश देने और सीबीआई को एक नियमित मामले में आगे बढ़ने की अनुमति देने के लिए सक्षम है।
यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी सरकारी अधिकारी के रंगे हाथों पकड़े जाने पर, सरकारी अनुमति के बिना भी, सीबीआई को उस पर केस पंजीकृत करने का अधिकार है।
- अगर कोई व्यक्ति सरकार और लोकपाल दोनों में ही अपनी शिकायत डालता है, तो लोकपाल को क्या करना चाहिए? क्या लोकपाल को यह शक्ति है कि वह लोकपाल विंग द्वारा जांच पूरी किए जाने तक सीबीआई को मामले से दूर रहने का निर्देश दे सके?
इस पर कोई स्पष्टता नहीं है।
- अधिनियम के अंतर्गत लोकपाल के लिए अलग से एक अभियोग विंग का प्रावधान रखा गया है। एक ही मामले पर सीबीआई और लोकपाल की कार्यवाही के दौरान सीबीआई के अभियोग विभाग के निदेशक को क्या करना होगा?
भारत की जनता में एक ही मामले की शिकायत अलग-अलग विभागों में डालने की सामान्य प्रवृत्ति है। भारत सरकार का अधिकार लोकपाल की अपेक्षा सीबीआई पर कहीं ज्यादा है। अतः दोनों के बीच में तकरार होने की पूरी संभावना हो सकती है।
अधिनियम में लोकपाल और सरकार, दोनों को ही सीबीआई पर निगरानी रखने का अधिकार दिया गया है। परन्तु दोनों को ही सीबीआई पर विशेष अधिकार नहीं दिए गए हैं।
- क्या लोकपाल किसी शिकायत के संबंध में सीबीआई को अपनी जांच स्थगित करने और उस पर सरकार का बहिष्कार करने का आदेश दे सकता है?
निश्चित रूप से इस बारे में कोई निर्देश न होने से सरकार और लोकपाल के शुरुआती संबंधों में दरार आ सकती है। अतः दोनों ही संस्थाओं को चाहिए कि वे अपने अहम् को छोड़कर भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने की दिशा में काम करें।
पिछले अनुभव बताते हैं कि अन्वेषण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं का अन्य एजेंसियों के साथ अक्सर विरोध होता रहा है। अपनी सफलता के लिए लोकपाल को ऐसे विरोधों को अपने पक्ष में करना होगा।
क्या कहते हैं वैश्विक अनुभव ?
वैश्विक मामलों से लगता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी गंभीर लड़ाई में अक्सर मजबूत शक्तिशाली निहित स्वार्थ शामिल होते हैं। अतः लोकपाल के लिए यह लड़ाई एक चुनौती होगी, और वह तब तक सफल नहीं हो सकता, जब तक कि वह इन मामलों में प्रमुख एजेंसियों का समर्थन प्राप्त न करे।
2017 की विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार इस लड़ाई में विकासशील देश तब तक नहीं जीत सकते, जब तक कि वे इस काम को करने के लिए प्रतिबद्ध न हों। इस प्रक्रिया में कर्त्तव्यनिष्ठ और समर्पित अधिकारियों की ऐसी टीम चाहिए, जो विशेषज्ञ हो और स्थायी हो।
19वीं शताब्दी के ब्रिटेन और अमेरिका में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला था।
पूरे विश्व में विकास के साथ भ्रष्टाचार बढ़ने की सामान्य प्रवृत्ति पाई जाती है। भारत के संदर्भ में भी ऐसा ही हो रहा है। 2025 तक यहाँ की 58.3 करोड़ जनता मध्यवर्ग में आ जाएगी। इस वर्ग के लोगों को प्रतिभा और कानून का राज ही प्रिय लगता है। उम्मीद की जा सकती है कि लोकपाल के साथ-साथ पूरा मध्य वर्ग भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही मुहिम में साथ खड़ा होगा। तभी इस बुराई का अंत हो सकेगा।
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