किसानों की आत्महत्या किसी भी समाज के लिए एक बेहद शर्मनाक स्थिति है। आखिर
वो कौन सी परिस्थितियां हो सकती हैं जिसकी वजह से किसान, जो सबके लिए अनाज
उपजाता है, आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है। भारत में अभी हाल के
दिनों में किसानों के आत्महत्या करने के आंकड़ों में वृद्धि दर्ज की गयी है
जो वाकई चिंता का विषय है और इस ओर अगर वक्त रहते ध्यान नहीं दिया गया तो
ये हालात और भी बिगड़ सकते हैं।
छात्रों के लिए भी किसानों की आत्महत्या जैसे ज्वलंत मुद्दे को समझने और उन
कारणों, जिनकी वजह से किसान इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं, का
समाधान सोचने की आवश्यकता है। हम यहां किसानों की आत्महत्या से जुड़े
मुद्दों की जांच-पड़ताल करते हुए एवं उनका समाधान सुझाते हुए साधारण भाषा
में 300, 500, 600 एवं 800 शब्दों में लेख प्रस्तुत कर रहे हैं जो
विद्यार्थियों के साथ-साथ अन्य लोगों के लिए भी समान रूप से उपयोगी है।
इनमें से आप अपनी आवश्यकतानुसार किसी भी लेख का चयन कर सकते हैं:
किसान आत्महत्या पर लेख
किसान आत्महत्या पर लेख 1 (300 शब्द)
भारत एक कृषि प्रधान देश है लेकिन फिर भी यहां किसानों के हालात पूरे विश्व
के कई विकासशील देशों की अपेक्षा बेहद चिंताजनक हैं। पिछले तकरीबन दो
दशकों से हमारे देश में किसानों की आत्महत्या की समस्याएं बढ़ गई हैं।
किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने की शुरूआत महाराष्ट्र के कपास की खेती
करने वाले किसानों द्वारा हुई और धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति पूरे देश के
किसानों में फैल गई। आज हालात ये हैं कि तकरीबन हर राज्य में किसानों की
आत्महत्या के आंकड़े जमा करने में सरकार लगी हुई है।
उदारीकरण एवं वैश्वीकरण
उदारीकरण और वैश्वीकरण की वजह से हमारे देश में सस्ते खाद्यानों का आयात भी
शुरू हो गया है और दूसरी तरफ देश के किसान लागत से भी कम मूल्य मिल पाने
की वजह से खड़ी फसलों को खेत में ही आग लगाने पर मजबूर हो रहे हैं। गरीबी,
तंगहाली एवं फसल उपजाने के उद्देश्य से लिए गए कर्जे और उसपर बढ़ रहे ब्याज
की वजह से अंत में वह परिवार समेत आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है।
निदान जरूरी
हालांकि कई कल्याणकारी योजनाएं भी सरकार द्वारा चलाई जा रही है लेकिन उन
योजनाओं का खास असर होता हुआ दिखाई नहीं पड़ रहा है। जरूरत यह है कि
किसानों की इस समस्या के बुनियादी कारणों पर गौर किया जाए उन्हें समझा जाए
और फिर निदान की दिशा में प्रयास किया जाए।
निष्कर्ष: भारत
जैसे एक कृषि प्रधान देश में किसानों की आत्महत्या बेहद चिंताजनक स्थिति
है और यह निश्चित रूप से एक राष्ट्रीय समस्या है जिससे निपटने का प्रयास
बिना वक्त गंवाए करना होगा। गरीब एवं भूमिहीन किसानों के लिए सरकार द्वारा
तुरंत फसल बीमा जैसे कल्याणकारी योजनाएं चलाए जाने की आवश्यकता है। साथ ही
सरकार को आसान ब्याज दर पर किसानों को ऋण उपलब्ध कराना होगा तभी किसानों को
आत्महत्या करने से रोका जा सकता है।
किसान आत्महत्या पर लेख 2 (500 शब्द)
हमारे देश में किसानों की आत्महत्या अब एक राष्ट्रीय समस्या का रूप धारण कर
चुकी है। रोज देश के किसी ना किसी हिस्से से किसानों के आत्महत्या की
इक्का-दुक्का खबरें मिलती ही रहती है। देश की प्रगति एवं विकास में अपनी
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद भी किसानों को जिंदगी से निराश होकर ऐसे
कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है तो निशिचत रूप से यह गंभीर चिंता
का विषय है।
किसानों द्वारा आत्महत्या करने की एक प्रमुख वजह फसल के लिए साहूकारों एवं
जमींदारों से उधार ली गई रकम का न चुका पाना होता है। समस्या उन किसानों के
लिए ज्यादा विकट हो जाती है जिनके पास खेती करने के लिए खुद की जमीन नहीं
होती। आत्महत्या करने वाले किसानों में ज्यादा ऐसे ही भूमिहीन किसान होते
है। वे बंटाई की व्यवस्था द्वारा जमींदारों के जमीनों पर खेती करते है और
तैयार फसल में से आधी फसल जमींदार को दे देते हैं। इस व्यवस्था की वजह से
कई बार किसानों के हाथ में कुछ भी नहीं आता क्योंकि उन्हें जमींदारों को
आधी फसल तो देनी ही पड़ती है और साथ ही उनसे लिए गए कर्ज का भुगतान भी करना
होता है। और दूसरी तरफ किसानों को बंटाई पर जमीन देने के अलावा जमींदारों
की कोई जिम्मेदारी नहीं होती और बस वे फसल तैयार होने पर सीधा अपना हिस्सा
लेने के लिए आ जाते हैं। वहीं किसान पहले तो बंटाई पर जमीन लेता है और फिर
बीज, खाद एवं खेतों की सिंचाई के लिए धन भी वो जमींदारों या सूदखोरों से
उधार लेता है।
गंभीर स्थिति
हम यह भी जानते हैं कि हमारे देश में किसानों को हर वर्ष बाढ़ या सूखे की
समस्या का सामना करना ही पड़ता है। किसी भी वजह से फसल खराब हो जाने की वजह
से किसान अपने कर्जों को चुकाने में नाकामयाब हो जाता है और उसकी हालत
खराब हो जाती है उसे आत्महत्या ही एकमात्र विकल्प नजर आता है।
किसानों द्वारा उपजाए गए अन्न के बिना किसी का भी गुजारा संभव नहीं है
इसलिए सरकार को तुरंत किसानों के हालात पर ध्यान देना चाहिए। सरकार को
चाहिए कि वे सभी कारण जो किसानों को आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर मजबूर कर
रहे हैं उनका निदान तुरंत करें। देश के तकरीबन सभी गांवों में किसानों की
कमोबेश यही स्थिति है। कर्ज नहीं चुका पाने की स्थिति से हो रही ज़िल्लत
एवं परेशानियां झेलने से ज्यादा उन्हें आत्महत्या कर लेने में अपनी भलाई
नज़र आती है।
समाधान क्या हैं?
इस समस्या का समाधान यही है कि सरकार द्वारा फसल गारंटी योजना, सस्ते ब्याज
दर पर किसानों को ऋण उपलब्ध कराना, या बजट बनाते वक्त ही किसानों को ऋण
देने के लिए अलग से एक निश्चित राशी का प्रावधान करने संबधी योजनाएं चलाई
जाएं। ऐसा करके ही हम किसानों की आत्महत्या जैसी दर्दनाक समस्या का समाधान
कर सकते हैं।
निष्कर्ष: किसानों
की आत्महत्या की समस्या पर ध्यान देना जरूरी है। कर्ज न चुका पाने और
फसलों के तबाह हो जाने की वजह से ही किसान आत्महत्या करते हैं। सरकार
द्वारा किसानों को इस समस्या से मुक्ति दिलाने के लिए आगे आना होगा और
किसानों के लिए ऋण उपलब्ध कराने के साथ ही फसलों के खराब हो जाने की स्थिति
में नुकसान की भरपाई के लिए भी सरकार द्वारा योजना बनाई जानी चाहिए।
इन्हीं प्रयासों द्वारा किसानों को आत्महत्या करने से रोका जा सकेगा।
किसान आत्महत्या पर लेख 3 (600 शब्द)
हमारे देश में किसान सुबह जल्दी उठकर पहले अपने पशुओं की सेवा करता है और
उसके बाद उसके कदम अपने-आप ही उसकी कर्मभूमि अर्थात् उसके खेतों की तरफ बढ़
जाते हैं। उसकी दिनचर्या खेतों पर ही शुरू होती है और उसके दैनिक कार्यों
में सबकुछ खेती से ही संबंधित होता है। वह एक आम शहरी नागरिक की तरह आठ
घंटे की नौकरी नहीं करता बल्कि उसका तो सारा समय ही खेती-बाड़ी में गुजरता
है। दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद वह शाम को जब कंधे पर हल लिए हुए अपने
बैलों को हांकता हुआ घर पहुंचता है तब भी उसका मन खेतों में अटका रहता है।
दूसरे दिन की जरूरतों एवं फसल की बुआई, कटाई आदि कि चिंता करते हुए ही वो
रात को सो जाता है और फिर सवेरे से ही उसकी वही दिनचर्या शुरू हो जाती है
और दिन का भोजन तो उसे खेतों में ही करना पड़ता है।
किसानों को पेश आ रही कठिनाईयां
ऐसी कठिन दिनचर्या के बाद कोई भी व्यक्ति यह कल्पना नहीं कर सकता कि उसे
रूपए-पैसे की कभी दिक्कत होगी और वह गरीबी की वजह से आत्महत्या भी कर सकता
है। लेकिन यह सच्चाई है कि हमारे देश में किसान आत्महत्या कर लेते हैं
क्योंकि वे ज्यादातर साहूकारों एवं जमींदारों से कर्ज लेकर ही खेती कर पाते
हैं। सही अर्थों में अपने फसल के बारे में कोई भी किसान भविष्यवाणी नहीं
कर सकता और कई बार तो उनकी पूरी फसल बाढ़, सूखे एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं
के चपेट में आकर तबाह हो जाती है और वे अपना कर्ज नहीं चुका पाते। कर्ज
नहीं उतार पाने की वजह से उनके द्वारा उधार ली गई रकम पर ब्याज बढ़ता ही
जाता है और धीरे-धीरे यह मूलधन से कई गुना ज्यादा हो जाता है।
एक फसल लेने के बाद दूसरी फसल लगाने के लिए उसे फिर से कर्ज लेना पड़ता है
और वह कर्ज के दुश्चक्र में फंसता ही चला जाता है। स्थिति इतनी भयावह है कि
पिता द्वारा खेती करने को लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए पिता की मृत्यु के
बाद बेटे के उपर भी वह कर्ज चढ़ जाता है और वह भी पूरी जिंदगी उसे उतारने
के लिए खेतों में मेहनत करता रहता है।
कारण और निदान
किसानों की इस स्थिति के लिए जिम्मेदार सबसे बड़ा वजह यह है कि हमारे देश
के ज्यादातर किसान भूमिहीन हैं और वे जमींदारों से बटाई पर जमीन लेकर खेती
करते हैं। उसके सामने असली मुसीबत की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब तमाम
व्यवस्थाएं एवं परिश्रम करने के बाद अचानक आए बाढ़ या सूखे की स्थिति की
वजह से उसकी फसल खराब हो जाती है और वह पूरी तरह बर्बाद हो जाता है। इस
प्रकार उसे दोहरी मार झेलनी पड़ती है, एक तरफ तो उसे जमींदार का फसल में
हिस्सा देने की चिंता सताती है और दूसरी तरफ उसे कर्ज और उसपर बढ़ रहे
ब्याज को चुकाने के बारे में सोचना पड़ता है।
इन सबमें उसकी अपनी एवं उसके परिवार की ज़िदगी तबाह हो जाती है और वह
थक-हारकर आत्महत्या कर लेता है। ऐसे में सरकार की यह बड़ी जिम्मेदारी है कि
हमारे अन्नदाता किसानों की रक्षा करें और उनके लिए सबसे पहले कम लागत पर
कृषि योग्य भूमि की व्यवस्था करे। उसके बाद उन्हें बीज एवं खाद मुफ्त में
मुहैया कराया जाना चाहिए। कृषि के लिए निम्न ब्याज दर पर धन भी सरकार को
उपलब्ध कराना चाहिए और यदि किसी वजह से किसानों की खेती बर्बाद हो जाए तो
उनके ऋण को माफ करने का प्रावधान भी होना चाहिए।
निष्कर्ष: फसल
लगाने से लेकर बजार तक पहुंचाए जाने तक की सभी गतिविधियों में सरकार को
किसानों का सहयोग करना चाहिए, उनके फसलों की गारंटी सुनिश्चित करनी होगी,
उनके लिए विभिन्न अनुदानों की व्यवस्था करनी होगी तभी किसान खुशहाल होंगे
और उन्हें आत्महत्या करने से रोका जा सकेगा।
किसान आत्महत्या पर लेख 4 (800 शब्द)
त्याग, तपस्या एवं कठिन परिश्रम का दूसरा नाम किसान है। हमारा देश एक कृषि
प्रधान देश है जहां लगभग सत्तर प्रतिशत जनसंख्या आज भी खेती पर निर्भर है।
यही वजह है कि हमारे देश में जहां भी देखो गांव ही गांव एवं दूर-दूर तक
फैले हुए खेत नजर आते हैं। तपती धूप हो या कड़ाके की सर्दी पड़ रही हो
किसान आपको खेतों में काम करते हुए दिख जाएंगे। किसानों की पूरी जिंदगी
मिट्टी से सोना उपजाने की कोशिश में निकल जाती है। किसानों का मुख्य
व्यवसाय कृषि अर्थात खेती होती है और मेहनती किसान बिना किसी शिकायत के
अपने खेतों में मेहनत करता रहता है। खेतों में फसल उपजाना कोई आसान काम
नहीं और फसल की बुआई, फसल की देखभाल, उसकी कटाई और फिर तैयार फसल को बाजार
में बेचने जैसी तमाम कोशिशें किसानों को लगातार करते रहना पड़ता है।
चिंताजनक स्थिति
इतनी कड़ी मेहनत करने के बाद भी देश के कुछ हिस्सों के किसान आत्महत्या
करने पर मजबूर है और यह एक गंभीर चिंता का विषय है। भारत को एक जमाने में
सोने की चिड़िया कहा जाता था क्योंकि यहां अन्न और धन की कोई कमी नहीं थी
और किसान सुखी थे। भारत को कृषिप्रधान देश का दर्जा भी इसी वजह से मिला
लेकिन आज हालात काफी बदल गए हैं। आज हमारे अन्नदाता किसान के हालात इतने
खराब हो गए हैं कि वे आत्महत्या करने को विवश हो जाते हैं। निश्चित रूप से
यह एक भयानक त्रासदी है और एक ऐसी सच्चाई है जिससे हम मुंह नहीं मोड़ सकते।
शुरूआत कैसे हुई
भारत में किसानों की आत्महत्या की समस्या लगभग 1990 के बाद प्रबल रूप से
प्रकाश में आई जब उदारीकरण का दौर शुरू हुआ था। अंग्रेजी भाषा के ‘द हिंदू’
नामक अखबार मे किसान आत्महत्या की सूचना देती हुई खबरें इसी वर्ष प्रकाशित
हुई और सबसे पहले ये खबरें महाराष्ट्र से आईं। महाराष्ट्र के विदर्भ में
कपास का उत्पादन करने वाले किसानों ने आत्महत्या कर ली थी और फिर
आंध्रप्रदेश से भी किसानों की आत्महत्या करने की खबरें मिलने लगीं।
शुरू-शुरू में लोगों ने यह सोचा कि यह समस्या सिर्फ विदर्भ एवं उसके आस-पास
के क्षेत्रों की ही है और उस वजह से वहां के स्थानीय सरकार को ही इस बारे
में ध्यान देने की जरूरत है लेकिन जब आंकड़ों को ध्यान से देखा गया तो
स्थिति और भी भयानक नजर आई।
यह पता चला कि आत्महत्या तो पूरे महाराष्ट्र में कई जगहों के किसान कर रहे
हैं और साथ ही आंध्रप्रदेश एवं देश के कई अन्य राज्यों में भी यही हालात
थे। यहां सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात यह है कि आत्महत्या करने वाले
केवल छोटी जाति वाले किसान ही नहीं थे, मध्यम और बड़े जाति वाले किसान भी
इस गतिविधि में शामिल थे। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2009 में कुल 17,368
किसानों ने आत्महत्याएं की और वर्तमान में प्रतिवर्ष 10,000 किसानों द्वारा
आत्महत्या का औसत दर्ज किया जा रहा है।
समाधान जरूरी
भारत में ज्यादातर किसान गरीब हैं और उनके पास अपनी जमीनें नहीं है। वे
जमींदारों की जमीन पर खेती करते हैं और उन्हीं से कर्ज लेकर बीज, खाद एवं
खेती से संबंधित अन्य जरूरतों की पूर्ति करते हैं। उनके एक कर्ज का बोझ उतर
भी नहीं पाता कि दूसरी फसल लगाने के लिए उन्हें फिर से कर्ज लेना पड़ जाता
है और इस बीच में अगर किन्हीं कारणों जैसे कि बाढ़, सूखा, फसल में कीड़ा
लग जाना इत्यादी से फसल खराब हो जाए तो वे कर्ज नहीं चुका पाते और इस वजह
से वे आत्महत्या कर लेते हैं।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भारत के किसान जमींदारों एवं साहूकारों के
आर्थिक शोषण से परेशान होकर ही आत्महत्या करते हैं। कई बार तो यह भी देखा
गया है कि फसल की जरूरत से ज्यादा पैदावार हो जाने की वजह से भी उन्हें
आत्महत्या करनी पड़ जाती है क्योंकि ज्यादा पैदावार होने पर फसल का बाजार
में न्यूनतम समर्थन मूल्य इतना गिर जाता है कि वह उनके कुल लागत से भी बेहद
कम हो जाती है और वे अपना कर्ज नहीं उतार पाते। ऋणग्रस्तता या कर्ज में
दबे होने की स्थिति ही गरीब किसानों को और भी गरीब बनाती है।
किसानों की आत्महत्या रोकने का कार्य सरकार कई किसान कल्याण एवं कृषि विकास
की योजनाओं द्वारा कर सकती है। साथ ही सरकार को फसल बीमा एवं कई अन्य
प्रकार की सहायता जैसे सहकारी बैंको से कम ब्याज दर पर ऋण की उपलब्धता
कराना एवं उच्च गुणवत्ता वाले बीज, उच्च स्तर के खाद, उत्तम कृषि यंत्र
प्रदान करना एवं भूमिहीन किसानों को भूमि उपलब्ध कराना आदि उपायों के
द्वारा सरकार किसानों की आत्महत्या को रोकने में कामयाब हो सकती है।
निष्कर्ष: किसानों
की आत्महत्या एक राष्ट्रीय समस्या का रूप ले चुकी है और अगर जल्द ही
किसानों की स्थिति बेहतर बनाने और उन्हें आत्महत्या करने से रोका न गया तो
यह स्थिति और भी भयावह रूप धारण कर सकती है। उनके लिए फसल बीमा, फसलों का
उच्च समर्थन मूल्य एवं आसान ऋण की उपलब्धी सरकार को सुनिश्चित करनी होगी
तभी किसानों की स्थिति सुधरेगी और उन्हें आत्महत्या करने से रोका जा सकेगा।
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