वर्तमान में पूरा विश्व बेरोजगारी के संकट से गुजर रहा है। ऐसे में भारत भी इससे अछूता नहीं है। वहीं सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को नौकरियों में दस फीसदी आरक्षण की घोषणा की है। इसके साथ ही एक बहस शुरू हो गई है कि क्या आरक्षण से ही बेरोजगारी खत्म हो जाएगी ? दूसरे, जब सरकार खाली पदों को भर ही नहीं रही है, तो आरक्षण का क्या लाभ ?
एक ओर तो भारत संसाधनों की कमी से जूझ रहा है, वहीं सरकार की गलत नीतियों ने बेरोजगारी को और बढ़ाया है। कृषि क्षेत्र की अनदेखी और कार्पोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने की केन्द्रित नीति से देश में बेरोजगारी बढ़ी है।
बेरोजगारी से जुड़े कुछ तथ्य –
- विश्व के कई देशों में बेरोजगारी की दर आठ से दस प्रतिशत है, जबकि भारत में यह साढ़े तीन प्रतिशत के आसपास है। रुस और अमेरिका जैसे देशों में भी बेरोजगारी दर भारत से ज्यादा है।
- भारत में इस समय चार करोड़ से अधिक लोग रोजगार की तलाश में हैं। प्रतिवर्ष एक करोड़ सत्तर लाख लोग रोजगार की तलाश में आ जुड़ते हैं।
- केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों में चार लाख से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। 2014 से लेकर 2018 तक सरकारी कर्मचारियों की संख्या लगातार घटती गई है।
सार्वजनिक क्षेत्र के लगभग तीन सौ उपक्रमों में भी नौकरियां कम हो गई हैं। सिर्फ बैंकिंग क्षेत्र ऐसा है, जहां रोजगार बढ़ा है।
- अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आठ प्रतिशत कर्मचारियों के वेतन पर खर्च हो रहा है, जो कि तर्कसंगत नहीं है। इसमें कटौती की जानी चाहिए।
इसके अलावा सरकारी कार्यालयों में काम करने की संस्कृति खत्म हो गई है। इसलिए तीसरे व चैथे दर्जे पर अनुबंधित कर्मचारियों को रखा जा रहा है।
- रोजगार के अवसरों में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की भागीदारी काफी कम हो गई है। कृषि क्षेत्र में पहले महिलाओं को ठीक-ठाक रोजगार मिल जाता था। लेकिन वहाँ भी अब रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं। दूसरी तरफ उद्योग, आधारभूत संरचना और निर्माण क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर कम होने से महिलाओं पर प्रभाव पड़ा है।
- भारत जैसे देश में पूंजी आधारित अर्थव्यवस्था के वर्चस्व ने मानव श्रम को भारी नुकसान पहुंचाया है। तकनीक और मशीन ने मानव श्रम की जगह ले ली है। पहले सड़क निर्माण में बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार मिलता था। अब इसमें मशीनों के व्यापक इस्तेमाल ने मानव श्रम की जरुरतों को कम कर दिया है।
उद्योग जगत में रोबोट के बढ़ते इस्तेमाल से अनुमान है कि 2030 तक पूरे विश्व में 80 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। इसका असर भारत पर भी पडे़गा।
समाधान –
भारत में रोजगार के अवसर बढ़़ाने के लिए सरकार को दूरगामी स्थायी नीतियां अपनानी होंगी।
- कृषि क्षेत्र को लाभदायी बनाने के लिए किसानों को परंपरागत खेती से हटकर अच्छी कीमत दिलाने वाली सब्जियों, फल एवं अनाज के उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
मनरेगा जैसी योजनाओं को और मजबूत करके भी इस संकट को कुछ हद तक दूर किया जा सकता है।
- विश्व के मध्य एशिया, पश्चिम एशिया से लेकर अफ्रीका तक में भारत के कुशल श्रमिकों की बहुत मांग है। अभी तक यह रोजगार व्यक्तिगत स्तर पर प्राप्त किया जा रहा है। जबकि चीन जैसे देश में सरकार की सहायता से अनेक लोग अफ्रीका से लेकर एशिया में रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। चीन ने ऐसे पैंसठ देशों की पहचान की है, जहां चीनी निवेश के बहाने चीनी लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा सके। भारत को भी ऐसी दीर्घकालिक नीति अपनानी होगी।
- सेवा क्षेत्र में रोजगार के अनेक अवसर बढ़ाए जा सकते हैं। भारत के टेक्निशियन, नर्स, होटल कर्मचारी आदि की विश्व के अनेक देशों में मांग है। सरकार की ओर से इनको बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
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