यह पहला ऐसा चुनाव रहा है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा हावी रहा है। देश के लिए यह विषय कोई नया नहीं है। लेकिन सरकार के समक्ष चुनौतियां नई हो सकती हैं। वर्तमान स्थिति को देखते हुए नवगठित सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े पाँच मोर्चों पर मुस्तैद रहने की आवश्यकता होगी।
1.मसूद मजहर को चीन द्वारा अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी करार दिए जाने के बाद भी उसकी ओर से चुनौतियां खत्म नहीं हो गई है। पाकिस्तान के जरिए चीन लगातार भारत को हिन्द महासागर में चुनौती दे रहा है। इससे भारतीय व्यापार को हानि हो सकती है। वह एक तरफ तो वुहान सम्मेलन जैसे स्वांग रचता है, तो दूसरी ओर डोकलाम में शत्रुतापूर्ण व्यवहार करता है।
भारत को विषम स्थितियों में ही अपना हित साधने के तरीके ढूंढने होंगे। अपना निवेश नेपाल, म्यामांर और बांग्लादेश की ओर बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। अजहर के प्र्करण ने हमें एक पाठ सिखा दिया है कि चीन को गोलबंद करने के लिए पाकिस्तान को दरकिनार किया जा सकता है। कुछ समय सेभारत ने महासागरों में अमेरिका, जापान और फिलीपीन्स के साथ जिस नौसेना अभ्यास की शुरुआत की है, उसे बनाए रखना होगा। इससे चीन की बढ़ती गतिविधियों पर नियंत्रण रखा जा सकता है। भारत चाहे तो चीन की बेल्ट-रोड योजना का विरोध जारी रख सकता है। आतंकवाद के मुद्दे पर हम पाकिस्तान पर कूटनीतिक और इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड एवं फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं के माध्यम से दबाव बनाए रख सकते हैं।
2.पूरे विश्व में आज 5जी का बोलबाला है। भारत की ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के साथ यह हमारे सुरक्षा ढांचे के लिए भी अति आवश्यक है। हमें तय करना होगा कि हम हुआवे और चीन के साथ जाना चाहते हैं या पश्चिमी देशों के नेटवर्क से जुड़ना चाहते हैं। यही झुकाव हमारी विदेश नीति का भविष्य तय करेगा। यह तय करने के बाद ही भारत को गुप्त सूचनाओं के आदान-प्रदान, सैन्य इंटर ऑपरेबिलिटी आदि का लाभ मिल सकेगा। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, इंटरनेट ऑफ दि थिंग्स, ऑटोनोमॉस प्लेटफार्म आदि ऐसे साधन हैं, जो नागरिक व सैन्य क्षेत्र के बीच उचित तालमेल बिठाने का काम कर रहे हैं।
3.हमें अपने सैन्य अधिग्रहण तंत्र की पुनर्विवेचना करने की आवश्यकता है। बालाकोट हमले से आतंकवाद के प्रति हमारी राजनीतिक इच्छाशक्ति का निश्चित तौर पर पता लगा, परन्तु हमले के बाद भी हमारी सैन्य श्रेष्ठता का कोई परिचय नहीं दिया गया।
सरकार चाहे तो इसके लिए विदेश मंत्रालय, सैन्य सेवाओं, वित्त मंत्रालय और कैग (सी ए जी) से प्रेरित एक स्वायत्त संस्था बना सकती है, जो अधिग्रहण के लिए काम करे।
4.इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी संगठन ने दक्षिण एशिया में अपना फैलाव कर रखा है। श्रीलंका पर हुए हमले के बाद दक्षिण भारत की सुरक्षा चाक चैबंद रखने की जरूरत है। केन्द्र और दक्षिणी भारतीय राज्यों को इस दिशा में मिलकर काम करने की जरूरत है, और इस भाग को उग्र नेतृत्व के शिकंजे से बचाना है।
भारत ने पाकिस्तान के प्रति कड़ा रूख अपनाते हुए उससे बातचीत के सभी दरवाजे बंद कर रखे हैं। अब मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने के बाद पाकिस्तान की ओर से किसी प्रकार की प्रतिक्रिया आने की आशंका है। अतः हमें पाकिस्तान से किसी स्तर, चाहे वह राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी हो, की वार्ता शुरू करने के बारे में सोचना चाहिए। क्योंकि पाकिस्तान एक ऐसा देश है, जिसकी नसों में आतंकवाद समाया हुआ है। वह आई एस, लश्कर या जैश जैसे संगठनों के माध्यम से भारत में कभी भी कोई कांड करवाने की प्रवृत्ति रखता है।
5.भारत को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा समिति में रणनीतिक स्तर के दूरसंचार तंत्र को स्थान देना चाहिए। इसका वास्ता विदेश मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय या मीडिया से नहीं है, बल्कि यह सीधे-सीधे भारत की मित्र और शत्रु नीति से जुड़ा हुआ है। जब भारत एक कमजोर और दबी हुई शक्ति हुआ करता था, तब उसके लिए मित्रता और शत्रुता के बीच धुंधला अंतर रखना चल जाया करता था। लेकिन अब स्थिति भिन्न है। परमाणु शक्ति सम्पन्न भारत के लिए यह कहना मुश्किल है कि वह किस उकसावे पर प्रतिशोध के किस स्तर से जूझने को बाध्य हो सकता है।
भारत की हिन्द-प्रशांत नीति के विषय में भी यही लागू होता है। इस हेतु देश को व्यापक रणनीति तैयार करनी होगी। चाहे वह इस्लामाबाद हो, बीजिंग हो या उसका अपना नार्थ ब्लॉक हो, नीतियों की स्पष्टता अत्यंत आवश्यक है। इससे न केवल हमारे रणनीति तैयार करने वाले महारथियों को मदद मिलेगी, बल्कि यह निवेशकों और व्यापार के लिए भी श्रेष्ठ स्थिति होगी। विश्व में एक बड़ी शक्ति बनने के साथ ही भारत के पूर्वानुमान और स्पष्टता में दृढ़ता होना अत्यंत आवश्यक है।
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